भारत में गेहूं रबी सीजन की रीढ़ है, और लाखों किसान इस फसल पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं। कम लागत में अधिकतम उत्पादन और आय वृद्धि के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली ने गेहूं की उन्नत किस्म पूसा गौतमी HD 3086 विकसित की है। यह किस्म न केवल उच्च उपज देती है, बल्कि स्ट्राइप रतुआ, लीफ रतुआ, लूज स्मट और फ्लैग स्मट जैसे घातक रोगों के प्रति मजबूत प्रतिरोधकता प्रदान करती है।
2013-14 में केंद्रीय उप-समिति फसल मानकों, अधिसूचना और कृषि फसलों की किस्मों की रिलीज द्वारा अधिसूचित यह किस्म उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में समयबद्ध सिंचित बुवाई के लिए डिज़ाइन की गई है। इसकी चपाती गुणवत्ता (Glu-1 स्कोर 10/10) और ब्रेड उद्योग में मांग इसे बाजार में प्रीमियम मूल्य दिलाती है। यह मध्यम बौनी किस्म रोग प्रबंधन की लागत कम करती है और किसानों की आय को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आइए, इसकी विशेषताओं, खेती के तरीके और आर्थिक लाभों को विस्तार से समझते हैं।
IARI की उपलब्धि
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने पूसा गौतमी HD 3086 को अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया है। इस किस्म ने 55 परीक्षणों में से 24 बार प्रथम गैर-महत्वपूर्ण समूह में स्थान प्राप्त किया, जो इसकी स्थिरता और श्रेष्ठता को दर्शाता है। उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में इसकी औसत उपज 54.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि अधिकतम क्षमता 71 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में औसत उपज 50.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और अधिकतम 61 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दर्ज की गई है।
यह प्रदर्शन चेक किस्मों जैसे एचडी 2967 और डीबीडब्ल्यू 17 से बेहतर है। उच्च उर्वरक और वृद्धि नियंत्रकों के साथ यह किस्म और बेहतर परिणाम देती है। इसके दाने बोल्ड, एम्बर रंग के, हार्ड और चमकदार होते हैं, जिनका औसत 1000 दानों का वजन 40-42 ग्राम है। यह किस्म विभिन्न फसल चक्रों जैसे धान-गेहूं या मक्का-गेहूं में स्थिर प्रदर्शन करती है।
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रोग प्रतिरोधकता
पूसा गौतमी HD 3086 की सबसे बड़ी ताकत इसकी रोग प्रतिरोधकता है। यह स्ट्राइप रतुआ (पीला रतुआ) और लीफ रतुआ (भूरा रतुआ) के प्रति उच्च स्तर की प्रतिरोधकता दिखाती है। स्लो रस्टिंग APR (एडल्ट प्लांट रेजिस्टेंस) प्रतिक्रियाओं के कारण यह रोगों से लंबे समय तक सुरक्षित रहती है। लूज स्मट और फ्लैग स्मट रोगों के प्रति भी यह मजबूत रक्षा प्रदान करती है।
प्राकृतिक और कृत्रिम संक्रमण परीक्षणों में इसकी ACI (एवरेज कोएफिशिएंट ऑफ इन्फेक्शन) वैल्यू कम रही है, जो रोग प्रबंधन में रासायनिक छिड़काव की जरूरत को कम करती है। इससे कीटनाशक लागत में 15-20% तक की बचत होती है। इसके अलावा, यह किस्म गेहूं ब्लास्ट और पाउडरी मिल्ड्यू जैसे रोगों के प्रति भी मध्यम प्रतिरोध दिखाती है, जो इसे जलवायु परिवर्तन के दौर में भरोसेमंद बनाती है।
बाजार में प्रीमियम कीमत
पूसा गौतमी HD 3086 की गुणवत्ता इसे खाद्य उद्योग में खास बनाती है। इसके दानों में प्रोटीन की मात्रा 11.5-12% और गीला ग्लूटन 30-32% है, जो चपाती, ब्रेड और बिस्कुट के लिए उपयुक्त है। Glu-1 स्कोर 10/10 होने से चपाती की गुणवत्ता उत्तम रहती है, और ब्रेड उद्योग में इसकी मांग बढ़ रही है। बिस्कुट फैलाव गुणांक 6.5-6.8 सेंटीमीटर और अवसादन मूल्य 60-62 ml होने से आटा उच्च गुणवत्ता का बनता है। इसके दाने जिंक (38-40 ppm) और लौह (35-37 ppm) से युक्त हैं, जो कुपोषण से लड़ने में मदद करते हैं। यह गुणवत्ता बाजार में 10-15% अधिक मूल्य दिलाती है, खासकर प्रीमियम आटा और बेकरी उत्पादों के लिए।
उत्तर और पूर्वी भारत के लिए आदर्श
IARI ने पूसा गौतमी HD 3086 को उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों की जलवायु के लिए डिज़ाइन किया है। उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर का कठुआ जिला, हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला और पांवटा घाटी, तथा उत्तराखंड का तराई क्षेत्र शामिल हैं। उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के मैदानी इलाके आते हैं। इन क्षेत्रों में 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान और अच्छी नमी के साथ यह किस्म शानदार प्रदर्शन करती है। समयबद्ध बुवाई से रोगों का खतरा कम होता है और उपज अधिकतम होती है।
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बुवाई और खेती की वैज्ञानिक विधि
पूसा गौतमी HD 3086 की बुवाई का सबसे अच्छा समय 25 अक्टूबर से 10 नवंबर तक है, जब तापमान अंकुरण के लिए अनुकूल रहता है। बुवाई के लिए 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयोग करें और पंक्तियों के बीच 20-22 सेंटीमीटर दूरी रखें। मिट्टी दोमट या बलुई दोमट होनी चाहिए, जिसका pH 6.0 से 7.5 हो। खेत की तैयारी में 2-3 बार गहरी जुताई करें और 100-150 क्विंटल सड़ी गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर मिलाएं।
उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन 120-140 किलोग्राम, फॉस्फोरस 60-70 किलोग्राम, और पोटाश 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें। आधा नाइट्रोजन और पूरा फॉस्फोरस-पोटाश बुवाई के समय मिलाएं, बाकी नाइट्रोजन 30 और 60 दिन बाद दो हिस्सों में दें। बीज को लूज स्मट और फ्लैग स्मट से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो बीज) या विटावैक्स (कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5%, 2-3 ग्राम/किलो बीज) से उपचारित करें। ड्रिल विधि से बुवाई करें ताकि अंकुरण एकसमान हो और बीज की बचत हो।
सिंचाई और देखभाल
इस किस्म को 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें, फिर उपलब्ध नमी के आधार पर हर 20-25 दिन पर। फूल आने (55-60 दिन) और दाना बनने (80-90 दिन) के चरण में सिंचाई अनिवार्य है। जलभराव से बचें, क्योंकि यह जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। पेंडीमेथालिन (1 किलो सक्रिय तत्व/हेक्टेयर) का उपयोग शुरुआती 2-3 दिन में करें।
इसकी रोग प्रतिरोधकता के कारण रासायनिक छिड़काव कम जरूरी है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर मैनकोजेब (2 किलो/हेक्टेयर) या प्रोपिकोनाजोल (0.5 लीटर/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। कीटों जैसे एफिड्स के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.2 लीटर/हेक्टेयर) उपयोगी है। जैविक खेती के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) या ट्राइकोडर्मा (5 किलो/हेक्टेयर) का उपयोग करें।
कटाई और भंडारण
उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में पूसा गौतमी HD 3086 145 दिनों में और उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में 121 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। कटाई तब करें जब पौधे पीले पड़ने लगें और दाने सख्त हो जाएं। समय पर कटाई से बीज झड़ने का नुकसान नहीं होता। कटाई के बाद दानों को 10-12% नमी स्तर तक सुखाएं और ठंडी, सूखी जगह पर भंडारित करें। बोरी में भंडारण से पहले फ्यूमिगेशन (एल्यूमिनियम फॉस्फाइड 10 ग्राम/टन) करें ताकि कीटों से सुरक्षा रहे।
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आर्थिक लाभ
उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में औसत 54.6 क्विंटल/हेक्टेयर (22 क्विंटल/एकड़) और अधिकतम 71 क्विंटल/हेक्टेयर (28.4 क्विंटल/एकड़) उपज मिलती है। बाजार मूल्य 2200-2500 रुपये/क्विंटल होने पर प्रति हेक्टेयर आय 1.2-1.8 लाख रुपये तक हो सकती है। प्रति हेक्टेयर लागत 40,000-50,000 रुपये (उर्वरक, बीज, सिंचाई, श्रम) होने पर शुद्ध लाभ 80,000-1.3 लाख रुपये तक संभव है। उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में 50.1 क्विंटल/हेक्टेयर औसत उपज से 1.1-1.25 लाख रुपये आय और 70,000-80,000 रुपये लाभ मिल सकता है। प्रोटीन और ग्लूटन युक्त दाने प्रीमियम मूल्य (2500-2800 रुपये/क्विंटल) दिलाते हैं, खासकर आटा और बेकरी उद्योगों में।
कहां से प्राप्त करें
पूसा गौतमी HD 3086 के बीज IARI, नई दिल्ली, राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), या स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) से प्राप्त करें। सरकारी योजनाओं जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के तहत बीज पर 50% तक सब्सिडी उपलब्ध है। बुवाई से पहले मिट्टी परीक्षण करवाएं और स्थानीय KVK या जिला कृषि कार्यालय से सलाह लें। माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे जिंक सल्फेट (20 किलो/हेक्टेयर) का उपयोग उपज और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए करें।
किसानों के लिए सुनहरा अवसर
पूसा गौतमी HD 3086 अपनी उच्च उपज, रोग प्रतिरोधकता और बेहतर पोषण गुणवत्ता के साथ उत्तर और पूर्वी भारत के किसानों के लिए वरदान है। समयबद्ध बुवाई, वैज्ञानिक प्रबंधन और उचित देखभाल से यह किस्म आय दोगुनी करने का सशक्त माध्यम है। इस रबी सीजन में इसे अपनाकर अपने खेत को समृद्ध बनाएं और आर्थिक मजबूती हासिल करें।
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