चिचिंढा (Snake Gourd) की खेती ग्रामीण और शहरी बागवानों के बीच खूब पसंद की जाती है। इसके लंबे, हरे और सांप जैसे फल स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी हैं। मगर, तनों और जड़ों में कीड़ों का हमला इसकी फसल को बर्बाद कर सकता है। अगर समय पर इन कीटों को नहीं रोका गया, तो पौधे कमजोर हो जाते हैं और फल देना बंद कर देते हैं। किसानों के अनुभव बताते हैं कि सही उपचार और देखभाल से चिचिंढा की फसल को बचाया जा सकता है। जैविक उपायों से कीट नियंत्रण आसान और प्रभावी है। आइए जानें कि चिचिंढा के तनों और जड़ों से कीड़े कैसे निकालें और इसका उपचार कैसे करें।
कीड़ों के हमले की पहचान
चिचिंढा के पौधों में कीड़ों की मौजूदगी को जल्दी पहचानना जरूरी है। प्रभावित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं और मुरझा जाती हैं। तनों में छोटे-छोटे छेद या दरारें दिखाई देती हैं, और अंदर खोखलापन महसूस होता है। जड़ों में सड़न या बदबू आना भी एक संकेत है। पौधे की बढ़ोतरी रुक जाती है, और फूल या फल झड़ने लगते हैं। तने को तोड़ने पर अंदर कीड़े या उनका काला मल दिखता है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि शुरुआती लक्षणों पर ध्यान देने से फसल को भारी नुकसान से बचाया जा सकता है।
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कीटों के प्रकार और कारण
चिचिंढा के तनों और जड़ों को नुकसान पहुँचाने वाले मुख्य कीट स्टेम बोरर और रूट ग्रब्स हैं। स्टेम बोरर तनों में सुरंग बनाकर पौधे का रस चूस लेते हैं, जिससे पोषण रुक जाता है। रूट ग्रब्स सफेद लार्वा होते हैं, जो जड़ों को खाकर पौधे को कमजोर करते हैं। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार, ये कीट गर्म और नम मौसम में तेजी से फैलते हैं, खासकर जब खेत में सफाई न हो या पुराने पौधों के अवशेष रह जाएँ। किसानों के अनुभव बताते हैं कि खेत की उचित जुताई न करने से भी कीटों का खतरा बढ़ता है।
कीड़े निकालने के आसान तरीके
प्रभावित पौधों को पहले पहचानें। तनों में छेद दिखने पर पतली लकड़ी या तार से कीड़े को बाहर निकालें। अगर तना ज्यादा खराब हो, तो उसे जड़ से काटकर नष्ट कर दें, ताकि कीट बाकी पौधों में न फैलें। जड़ों में कीड़े होने पर मिट्टी हटाकर साफ करें और सफेद लार्वा को हाथ से निकालकर नष्ट करें। किसानों के अनुभव बताते हैं कि सरसों के तेल की कुछ बूंदें तने के छेद में डालकर मिट्टी से बंद करने से कीट मर जाते हैं। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, जड़ों को 0.1% कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर पानी) के घोल में 5-10 मिनट डुबोने से सड़न कम होती है।
जैविक उपचार से कीट नियंत्रण
जैविक उपाय पर्यावरण और फसल दोनों के लिए सुरक्षित हैं। नीम का तेल (5 मिली/लीटर पानी में 1 मिली लिक्विड सोप मिलाकर) हर 7-10 दिन में छिड़कें। यह स्टेम बोरर और रूट ग्रब्स को मारने में कारगर है। बवेरिया बेसियाना जैसे जैविक कवक का उपयोग भी कीटों को नियंत्रित करता है। खेत में नीम की खली (250-500 ग्राम प्रति गड्ढा) डालने से कीटों की संख्या कम होती है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि हल्दी पाउडर और राख का मिश्रण तने के छेद में भरने से घाव जल्दी भरता है। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार, जैविक उपाय लंबे समय तक फसल को स्वस्थ रखते हैं।
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रासायनिक उपचार का सही उपयोग
अगर कीटों का प्रकोप ज्यादा हो, तो रासायनिक उपचार जरूरी हो सकता है। इमामेक्टिन बेनजोएट 5 SG (1 ग्राम/लीटर पानी) को सिरिंज से तने के छेद में डालें और छेद को मिट्टी से बंद करें। क्लोरपाइरीफॉस 20 EC (2.5 मिली/लीटर पानी) जड़ों के आसपास डालें। फिप्रोनिल 5 SC (2 मिली/लीटर पानी) भी पौधे के आधार पर डालने से कीट नियंत्रित होते हैं। दवाओं का उपयोग करते समय दस्ताने और मास्क पहनें। किसानों के अनुभव बताते हैं कि रासायनिक दवाओं का कम और सावधानी से उपयोग करना चाहिए।
कीटों से बचाव के उपाय
कीटों से बचने के लिए पहले से सावधानी बरतें। फसल चक्र अपनाएँ और एक ही जगह बार-बार चिचिंढा न उगाएँ। खेत की गहरी जुताई करें, ताकि कीट और लार्वा धूप में मर जाएँ। खेत में पानी का जमाव न होने दें। समय-समय पर पौधों की जाँच करें और शुरुआती लक्षण दिखते ही उपचार शुरू करें। नीम आधारित उत्पादों का नियमित छिड़काव करें। खरपतवार और पुराने पौधों के अवशेष तुरंत हटाएँ। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, जैव उर्वरक जैसे जायटॉनिक पोटाश डालने से पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
किसानों के अनुभव बताते हैं कि तने में कीड़े होने पर लहसुन का रस (10 मिली/लीटर पानी) छिड़कने से कीट भागते हैं। कुछ बागवान तने के छेद में राख और नीम पाउडर का मिश्रण भरते हैं, जो सस्ता और प्रभावी है। चिचिंढा की फसल को कीटों से बचाने के लिए शुरुआत से ही साफ-सफाई और जैविक उपायों पर ध्यान दें। सही समय पर उपचार और रोकथाम से आपकी फसल हरी-भरी रहेगी और मुनाफा देगी।
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