Multi Crop Farming: आज का किसान सिर्फ मेहनती नहीं, समझदार और दूरंदेशी भी बन गया है। पहले जहाँ एक खेत में सिर्फ एक फसल बोकर पूरा साल इंतज़ार करना पड़ता था, अब वही खेत कई फसलें एक साथ उगा रहा है। इसे कहते हैं कृषि विविधीकरण और इंटरक्रॉपिंग। भारत सरकार का कृषि मंत्रालय भी बार-बार यही संदेश दे रहा है कि एक खेत में कई फसलें उगाना ही आने वाले समय की सबसे सुरक्षित और लाभकारी खेती है।
एक फसल पर निर्भरता क्यों खतरनाक है
जब पूरा खेत एक ही फसल से भरा होता है तो जोखिम बहुत बड़ा हो जाता है। अगर मौसम ने साथ नहीं दिया, रोग लग गया या बाज़ार में भाव गिर गए तो सारी मेहनत एक झटके में बर्बाद। लेकिन जब खेत में गेहूँ के साथ चना, सरसों के साथ मसूर या कपास के साथ मूँग-सोयाबीन उगाई जाती है तो नुकसान की मार एक फसल तक सीमित रहती है। एक फसल कमज़ोर भी पड़े तो दूसरी फसल पूरा घाटा निकाल लेती है। इस तरह जोखिम बँट जाता है और आय कई गुना बढ़ जाती है।
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मिट्टी भी स्वस्थ रहती है, खर्च भी कम होता है
जब अलग-अलग परिवार की फसलें एक साथ उगती हैं तो मिट्टी से एक ही तरह का पोषक तत्व बार-बार नहीं खींचा जाता। दलहनी फसलें जैसे चना, मसूर, मूँग हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी को और उपजाऊ बनाती हैं। लहसुन, प्याज या मेथी जैसी फसलें प्राकृतिक रूप से कीटों को दूर रखती हैं। सरसों और गेंदा नेमाटोड जैसे हानिकारक सूत्रकृमियों को नियंत्रित करती हैं। नतीजा यह होता है कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों का खर्च कम होता है और मिट्टी साल-दर-साल बेहतर होती जाती है।
सबसे सफल और आजमाए हुए संयोजन
उत्तर भारत के लाखों किसान पिछले कई सालों से इन संयोजनों को अपना रहे हैं और शानदार परिणाम ले रहे हैं। गेहूँ के साथ चना या मसूर बोने पर जहाँ गेहूँ से 16-18 क्विंटल अनाज मिलता है, वहीं चना-मसूर से 5-7 क्विंटल अतिरिक्त उत्पादन हो जाता है। इसी तरह सरसों को गेहूँ या चने के साथ बोया जाए तो खरपतवार अपने आप कम हो जाते हैं और सरसों की अलग से अच्छी कीमत भी मिलती है। खरीफ में कपास के बीच मूँग या सोयाबीन बहुत अच्छा चलता है।
गन्ने की पंक्तियों में गर्मियों में मूँग-उड़द बोने से गन्ने की छाँव का पूरा फायदा मिलता है। मक्के के साथ लोबिया या उड़द लेने से हरा चारा भी मिलता है और दाल भी। फलदार बागों में आम, अमरूद या नींबू के पेड़ों के बीच पपीता, अदरक या हल्दी उगाई जा रही है। सब्जियों में टमाटर की कतारों के बीच धनिया, मेथी या प्याज-लहसुन बहुत अच्छा चल रहा है।
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बाज़ार और नकदी का प्रवाह भी बना रहता है
इंटरक्रॉपिंग का एक बहुत बड़ा फायदा यह भी है कि सारी फसलें एक साथ तैयार नहीं होतीं। एक फसल दिसंबर-जनवरी में बिकती है, दूसरी मार्च-अप्रैल में, तीसरी मई-जून में। इस तरह साल भर घर में पैसे आते रहते हैं और कर्ज लेने की नौबत नहीं आती। कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई योजनाएँ चला रही हैं। परंपरागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में मिश्रित खेती करने वाले किसानों को प्राथमिकता दी जाती है। बीज, खाद, स्प्रिंकलर, ड्रिप सेट जैसी चीजों पर सब्सिडी पहले मिलती है। कई राज्यों में इंटरक्रॉपिंग करने पर अलग से प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है।
शुरुआत कैसे करें
अगर आप पहली बार कर रहे हैं तो पूरा खेत एक साथ बदलने की जरूरत नहीं है। इस बार सिर्फ 20-30 प्रतिशत क्षेत्र में ही आज़माएँ। अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विभाग के अधिकारी से सलाह लें। जो किसान पहले से सफलतापूर्वक कर रहे हैं, उनके खेत देखने जाएँ। एक साल का अनुभव हो जाए तो अगले साल पूरा खेत इस तरह तैयार कर लें।
आज का स्मार्ट किसान वही है जो एक ही खेत से कई फसलें ले रहा है, मिट्टी को स्वस्थ रख रहा है और हर मौसम में सुरक्षित कमाई कर रहा है। एक खेत, कई फसलें, कई खुशियाँ – यही नई भारत की नई खेती है। आज से ही संकल्प लें कि अपनी खेती को विविध बनाएँगे और आने वाले सालों में समृद्ध और आत्मनिर्भर किसान बनेंगे।
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