मखाना की खेती से होगी बंपर कमाई! जानिए कैसे सरकार दे रही है भारी भरकम लोन

Makhana ki kheti: वर्तमान में, मखाना, एक पौष्टिक और उच्च मूल्य वाला उत्पाद है। यह जलीय पौधे के बीज हैं, जो तालाबों, झीलों, और स्थिर जलाशयों में उगाए जाते हैं। भारत में बिहार, पश्चिम बंगाल, और असम के किसान मखाना की खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं। इसकी माँग स्वास्थ्य खाद्य क्षेत्र, आयुर्वेदिक दवाइयों, और स्नैक्स उद्योग में तेजी से बढ़ रही है। बिहार के दरभंगा, मधुबनी, और सीतामढ़ी जैसे क्षेत्रों में यह खेती प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। यह लेख मखाना की खेती की प्रक्रिया, आवश्यक शर्तें, तालाब की तैयारी, कीट नियंत्रण, लागत, मुनाफा, और सरकारी योजनाओं पर विस्तृत जानकारी देगा।

मखाना की खेती का महत्व

मखाना एक पौष्टिक खाद्य है, जो प्रोटीन, फाइबर, और एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है। यह आयुर्वेद में गुर्दे, हृदय, और पाचन तंत्र के लिए लाभकारी माना जाता है। वर्तमान में, मखाना का उपयोग नाश्ते, मिठाइयों, और स्वास्थ्य सप्लीमेंट्स में बढ़ रहा है। भारत में मखाना का 90% उत्पादन बिहार से होता है, जहाँ 15,000-20,000 हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है। पश्चिम बंगाल और असम में भी तालाबों और बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में यह खेती बढ़ रही है। इसकी उच्च बाजार कीमत (500-800 रुपये/किलो) और कम रखरखाव लागत इसे छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभकारी बनाती है। जैविक मखाना की माँग अंतरराष्ट्रीय बाजारों (अमेरिका, यूरोप) में भी बढ़ रही है, जिससे निर्यात संभावनाएँ बढ़ी हैं।

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खेती के लिए आवश्यक शर्तें

मखाना की खेती के लिए विशिष्ट जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता होती है। गर्म और आर्द्र जलवायु, जिसमें तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस हो, सबसे उपयुक्त है। यह फसल बारिश के मौसम (जून-सितंबर) और सर्दियों (नवंबर-फरवरी) में उगाई जाती है। बिहार के दरभंगा और मधुबनी जैसे क्षेत्रों में नदियों और तालाबों की उपलब्धता इसे आदर्श बनाती है। पश्चिम बंगाल के हुगली और असम के जोरहाट में भी जलवायु अनुकूल है।

मखाना के पौधे दोमट या चिकनी मिट्टी वाले तालाबों में अच्छी तरह विकसित होते हैं। तालाब की गहराई 4-6 फीट होनी चाहिए, ताकि जड़ें पर्याप्त पानी और पोषक तत्व प्राप्त करें। मिट्टी का pH 5.5-7.5 होना चाहिए। यदि मिट्टी अम्लीय है, तो प्रति हेक्टेयर 200-300 किलो चूना डालकर pH संतुलित करें। स्वस्थ और रोगमुक्त बीज चुनना महत्वपूर्ण है। बीज गहरे भूरे रंग के और एकसमान आकार के होने चाहिए। ICAR-राष्ट्रीय जलीय फसल अनुसंधान केंद्र (NRCA) या KVK से प्रमाणित बीज खरीदें। प्रति हेक्टेयर 10-12 किलो बीज पर्याप्त हैं।

तालाब की तैयारी और प्रबंधन

मखाना की खेती (Makhana ki kheti) के लिए तालाब की सही तैयारी आवश्यक है। सबसे पहले, तालाब को पूरी तरह साफ करें। पुराने पौधे, खरपतवार, और कचरे को हटाएँ। तालाब के तल में जमी गाद को खोदकर निकाल दें, क्योंकि यह पौधों की वृद्धि को बाधित कर सकती है। यह कार्य मई के अंत तक पूरा करें, ताकि जून में बुवाई शुरू हो सके। तालाब के तल में प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और पौधों को पोषण प्रदान करता है। खाद डालने के बाद तालाब में 4-5 फीट पानी भरें। पानी साफ और स्थिर होना चाहिए, क्योंकि प्रदूषित पानी या बहाव वाले क्षेत्र पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं।

पानी का प्रबंधन मखाना की खेती का महत्वपूर्ण हिस्सा है। गर्मियों में पानी का स्तर कम होने पर नहरों या बोरवेल से जलापूर्ति करें। वर्षा ऋतु में जल निकास की व्यवस्था करें, ताकि अतिरिक्त पानी तालाब में न जमा हो। पानी भरने के 10-15 दिन बाद बीज बोएँ। तालाब में मछलियाँ (जैसे कतला, रोहू) छोड़ना लाभकारी है, क्योंकि ये जलीय कीटों को खाती हैं और अतिरिक्त आय देती हैं।

बीज बुवाई और पौधों की देखभाल

मखाना की बुवाई का उपयुक्त समय मई-जून (बारिश से पहले) या नवंबर-दिसंबर (सर्दियों की शुरुआत) है। बीजों को तालाब के किनारे से 2-3 मीटर दूर, 2-3 फीट की दूरी पर बोएँ। प्रत्येक बीज को मिट्टी में 2-3 इंच गहराई में दबाएँ। बुवाई के 7-10 दिन बाद बीज अंकुरित होते हैं। पौधे 1-2 महीने में पानी की सतह तक फैल जाते हैं, और उनकी गोलाकार, काँटेदार पत्तियाँ पानी पर तैरने लगती हैं। ये पत्तियाँ कीटों से पौधों की रक्षा करती हैं।

पौधों की देखभाल में जैविक खाद का उपयोग करें। गोबर खाद, केंचुआ खाद, या हड्डी का चूरा प्रति हेक्टेयर 2-3 टन डालें। रासायनिक उर्वरकों से बचें, क्योंकि ये पानी को प्रदूषित करते हैं। यदि जरूरी हो, तो NPK (20:10:10) की कम मात्रा (10-15 किलो/हेक्टेयर) डालें। फफूंदी और जलीय कीटों से बचाव के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) या गोमूत्र (10% घोल) का छिड़काव करें। नियमित निगरानी करें और प्रभावित पौधों को हटाएँ।

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कटाई और प्रोसेसिंग की प्रक्रिया

मखाना की फसल बुवाई के 6-7 महीने बाद तैयार होती है। नवंबर-दिसंबर में पत्तियाँ पीली पड़ने और बीज पानी की सतह पर दिखने लगें, तो कटाई शुरू करें। कटाई से पहले तालाब का पानी धीरे-धीरे सुखाएँ। बीजों को तालाब के तल से इकट्ठा करें और छाया में 2-3 दिन सुखाएँ। धूप में सुखाने से बीज फट सकते हैं। सूखे बीजों को साफ कर कपड़े के बोरों में भंडारित करें।

प्रोसेसिंग में बीजों को भूनकर पॉप किया जाता है। इसके लिए बीजों को लोहे के बर्तन में गर्म रेत के साथ 200-250 डिग्री सेल्सियस पर भूनें। भूनने के बाद बीज फूलकर मखाना बन जाते हैं। पॉप्ड मखानों को छांटकर एयरटाइट पैकिंग में बंद करें। यह प्रक्रिया मशीनों या स्थानीय श्रम से की जा सकती है। जैविक मखानों की पैकिंग पर ऑर्गेनिक प्रमाणन लेबल लगाएँ, जिससे बाजार मूल्य 20-30% बढ़ता है।

लागत और लाभ कितना हो सकता है

मखाना की खेती (Makhana ki kheti) की लागत प्रति हेक्टेयर 1.5-2 लाख रुपये है। इसमें तालाब की सफाई (20,000-30,000 रुपये), बीज (10,000-15,000 रुपये), खाद (30,000-40,000 रुपये), श्रम (50,000-60,000 रुपये), और प्रोसेसिंग (30,000-40,000 रुपये) शामिल हैं। एक हेक्टेयर से 15-20 क्विंटल कच्चे बीज मिलते हैं, जिनसे 3-4 क्विंटल पॉप्ड मखाना तैयार होता है। बाजार में पॉप्ड मखाना का मूल्य 500-800 रुपये/किलो है। इससे प्रति हेक्टेयर 3-5 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हो सकता है। जैविक मखाना की बिक्री से मुनाफा 5-7 लाख रुपये तक हो सकता है।

सरकारी सहायता और प्रशिक्षण की जरुरत

मखाना की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई सरकारी योजनाएँ उपलब्ध हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) तालाब निर्माण और जल संचयन के लिए 50-75% अनुदान देती है (pmksy.gov.in)। राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) जलीय खेती के लिए प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करता है। बिहार के किसान दरभंगा KVK या ICAR-NRCA (पूर्णिया) से संपर्क करें। किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के तहत 1.5 लाख रुपये तक का ऋण 4% ब्याज पर उपलब्ध है। बिहार सरकार की मखाना विकास योजना तालाब किराए और बीज खरीद के लिए सब्सिडी देती है। पश्चिम बंगाल और असम में NHM और स्थानीय उद्यान विभाग से सहायता लें।

चुनौतियाँ और उनके समाधान

मखाना की खेती में कुछ चुनौतियाँ हैं। तालाब की उपलब्धता छोटे किसानों के लिए समस्या हो सकती है। इसके लिए सामूहिक खेती या तालाब किराए पर लें। कीट और फफूंदी का प्रकोप वर्षा ऋतु में बढ़ता है। जैविक कीटनाशकों और मछली पालन से इसे नियंत्रित करें। प्रोसेसिंग में कुशल श्रम और मशीनों की कमी हो सकती है। स्थानीय KVK से प्रशिक्षण लें और मशीन खरीद के लिए NHM सब्सिडी का उपयोग करें। बाजार तक पहुँच के लिए e-NAM और FPO का उपयोग करें।

मखाना की खेती बिहार, पश्चिम बंगाल, और असम के किसानों के लिए एक लाभकारी अवसर है। इसकी उच्च माँग, कम लागत, और पर्यावरण-अनुकूल प्रकृति इसे पारंपरिक फसलों से बेहतर बनाती है। सही तालाब प्रबंधन, जैविक खाद, और कीट नियंत्रण से प्रति हेक्टेयर 3-5 लाख रुपये का मुनाफा संभव है। ICAR, KVK, और सरकारी योजनाओं का समर्थन लेकर किसान इस खेती को सफल व्यवसाय बना सकते हैं। जैविक प्रमाणन और ऑनलाइन विपणन से आय को और बढ़ाया जा सकता है। यदि आपके पास तालाब या जल स्रोत है, तो मखाना की खेती आपके लिए आर्थिक समृद्धि का मार्ग खोल सकती है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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