खेत में काम कर रहे किसानों की किडनी क्यों हो रही खराब? जानिए असली वजह

देश के किसान भाई लंबे समय से खेतों में मेहनत करते आ रहे हैं, लेकिन अब एक नई स्वास्थ्य समस्या ने सबको चिंतित कर दिया है। तमिलनाडु से निकली एक ताजा स्टडी बता रही है कि गर्मी की मार और लगातार डिहाइड्रेशन किसानों की किडनी को चुपचाप नुकसान पहुंचा रहा है।

ब्रिटेन की मशहूर मेडिकल पत्रिका ‘द लैंसेट’ में छपी इस रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि राज्य के 5.31 प्रतिशत से ज्यादा किसान क्रॉनिक किडनी डिजीज यानी सीकेडी से जूझ रहे हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से आधे से ज्यादा मामलों में डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर जैसी कोई पुरानी बीमारी नहीं थी। ये बीमारी अज्ञात कारणों से हो रही है, जिसे सीकेडी यू कहते हैं।

स्टडी का दायरा और तरीका

ये शोध अगस्त से दिसंबर 2023 के बीच किया गया। शोधकर्ताओं ने तमिलनाडु के पांचों कृषि-जलवायु क्षेत्रों – उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, पश्चिमी, कावेरी डेल्टा और दक्षिणी इलाकों – से 125 गांवों के 3,350 किसानों को शामिल किया। सैंपलिंग मेथड से उनके कामकाज, स्वास्थ्य और पर्यावरण के जोखिमों के आंकड़े जुटाए गए। सभी टेस्ट एक ही लैब में हुए, ताकि कोई गलती न हो। मद्रास मेडिकल कॉलेज के नेफ्रोलॉजी विभाग के सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर आर. शक्तिराजन, जो स्टडी के को-ऑथर हैं, ने कहा कि ये मामलों में कोई साफ लक्षण नहीं दिखते। यानी सबक्लीनिकल डैमेज है, जो खास टेस्ट से ही पता चलता है।

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गर्मी का किडनी पर असर

स्टडी में साफ दिखा कि गर्मी किसानों के किडनी फंक्शन को कैसे बिगाड़ रही है। अगस्त के महीने में, जो तमिलनाडु के सबसे गर्म समयों में से एक था, 17.4 प्रतिशत लोगों की ईजीएफआर वैल्यू 60 मिली/मिनट/1.73 वर्ग मीटर से नीचे चली गई। ईजीएफआर एक ब्लड टेस्ट है जो बताता है कि किडनी खून से वेस्ट मटीरियल कितना अच्छे से छान रही है।

लेकिन दिसंबर में दोबारा टेस्ट होने पर ज्यादातर लोगों के किडनी फंक्शन सामान्य हो गए। मतलब गर्मी के तनाव से किडनी का काम सर्दी की तुलना में कमजोर पड़ जाता है। ये पैटर्न सेंट्रल अमेरिका और श्रीलंका के किसानों में भी देखा गया है, जहां लंबे समय तक धूप में काम करने से किडनी धीरे-धीरे खराब हो जाती है।

डिहाइड्रेशन मुख्य दुश्मन

लैंसेट की रिपोर्ट कहती है कि न तो डायबिटीज और न ही ब्लड प्रेशर इसकी वजह है। बल्कि तेज गर्मी में घंटों खेतों में रहना और पसीने से शरीर का पानी कम होना डिहाइड्रेशन पैदा करता है। इससे किडनी पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। किसान भाई प्यास लगने पर भी पानी पीने से हिचकते हैं, क्योंकि टॉयलेट की कमी या काम की जल्दी होती है।

नतीजा, बार-बार होने वाला ये स्ट्रेस किडनी को स्थायी नुकसान पहुंचाता है। ये समस्या सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं। भारत के अन्य हिस्सों जैसे ओडिशा में जुलाई की एक स्टडी में 14 प्रतिशत किसानों में हीट स्ट्रेस और डिहाइड्रेशन से जुड़ी सीकेडी पाई गई। आंध्र प्रदेश के उद्दानम इलाके में तो अनुमान है कि 40-60 प्रतिशत आबादी प्रभावित हो सकती है।

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भारत भर में बढ़ता खतरा

ये स्वास्थ्य संकट जलवायु परिवर्तन से जुड़ा लग रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से गर्मी की लहरें ज्यादा तीव्र हो रही हैं, और किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। येल यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में आउटडोर वर्कर्स पर हीट स्ट्रेस का असर बढ़ रहा है, जो किडनी इंजरी का कारण बन रहा है। श्रीलंका और निकारागुआ जैसे देशों में भी चीनी के खेतों में काम करने वाले मजदूर इसी समस्या से जूझ रहे हैं।

भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी ये महामारी फैल रही है। जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर विवेकानंद झा कहते हैं कि किडनी जलवायु परिवर्तन का ‘कैनरी इन द कोल माइन’ हो सकती है, यानी ये सबसे पहले खतरे की घंटी बजा रही है।

बचाव के आसान उपाय

किसान भाइयों, ये समस्या रोकथाम से ही संभाली जा सकती है। सबसे पहले, खेत में काम करते समय हर घंटे 2-3 लीटर पानी पिएं। नमक और नींबू मिलाकर ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन बनाएं। दोपहर 12 से 4 बजे तक धूप से बचें – छाया में आराम करें। हेलमेट या टोपी पहनें, और हल्के कपड़े चुनें। अगर थकान या सिरदर्द हो, तो तुरंत डॉक्टर से चेकअप करवाएं। ईजीएफआर टेस्ट करवाकर किडनी की स्थिति पता करें। सरकार को भी कदम उठाने चाहिए जैसे खेतों में शेड और पानी की सुविधा, साथ ही जागरूकता कैंप। ये छोटे बदलाव लाखों किसानों की सेहत बचा सकते हैं।

आगे की राह

लैंसेट स्टडी के शोधकर्ता कहते हैं कि अगले सीजन में और फॉलो-अप होगा, ताकि पता चले कि बार-बार गर्मी का स्ट्रेस सीकेडी में कैसे बदलता है। तमिलनाडु के अलावा पूरे भारत में ऐसी स्टडीज जरूरी हैं। किसान भाई, आपकी मेहनत देश का अन्न देती है, लेकिन अपनी सेहत का भी ख्याल रखें। अगर आपके इलाके में भी ऐसी समस्या दिख रही है, तो लोकल हेल्थ सेंटर से संपर्क करें। ये संकट बड़ा है, लेकिन जागरूकता से जीता जा सकता है।

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  • Shashikant

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