चने के फसल पर बढ़ा इस रोग का खतरा! किसान भाई… जल्द करें ये उपाय, नहीं तो पछतायेंगे

चना हमारी प्रमुख दलहनी फसलों में से एक है, और रबी सत्र 2024-25 में इसका रकबा 98.55 लाख हेक्टेयर तक पहुँच गया है। ये फसल किसानों की जेब भरती है, लेकिन इसमें रोगों का खतरा भी कम नहीं। मिट्टी से लेकर पत्तियों तक, कई बीमारियाँ चने की मेहनत पर पानी फेर सकती हैं। पूसा संस्थान के विशेषज्ञ डॉ. सी. भारद्वाज ने इसके लिए कई आसान और कारगर सुझाव दिए हैं। अगर सही समय पर सही कदम उठाएँ, तो चना आपका खेत और घर दोनों चमका सकता है। चलिए, इन रोगों और बचाव के तरीकों को देसी अंदाज में समझते हैं।

मिट्टी जनित रोग क्यों लगते हैं?

डॉ. भारद्वाज बताते हैं कि चने में मिट्टी से आने वाले रोगों का सबसे बड़ा कारण है फसल चक्र की अनदेखी। कई किसान भाई हर साल एक ही खेत में चना बोते हैं, जिससे मिट्टी में रोगों के कीटाणु बढ़ते जाते हैं। उकठा रोग ऐसा ही एक दुश्मन है, जो चने को कमजोर कर देता है। इसके लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। इससे पुरानी फसल के अवशेष सूरज की रोशनी में जल जाएँगे और कीट-फफूंद मर जाएँगे। साथ ही, सिंचाई से पहले 100 किलो सड़ी गोबर खाद में 10 किलो ट्राइकोडर्मा मिलाकर एक हेक्टेयर में फैलाएँ। फिर पानी से इसे मिट्टी में मिला दें। ये देसी नुस्खा रोगों को भगाने में धांसू है।

बीज उपचार से रोगों को रोकें

चने को रोगों से बचाने का सबसे आसान तरीका है बीज उपचार। जैविक और रासायनिक कीटनाशकों से बीज तैयार करें, तो मिट्टी जनित रोगों का खतरा कम हो जाता है। डॉ. भारद्वाज की सलाह है कि प्रति किलो बीज में 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाकर उपचार करें। ये छोटा कदम शुरू से ही फसल को ताकत देता है। साथ ही, पूसा चना मानव जैसी प्रतिरोधी किस्में चुनें, जो उकठा रोग से लड़ सकें। इसकी पैदावार 2.5 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। बीज सही हुआ, तो फसल भी लहलहाएगी।

उकठा और जड़ सड़न का इलाज

उकठा रोग के साथ-साथ शुष्क जड़ सड़न और जड़ सड़न भी चने की फसल को नुकसान पहुँचाते हैं। इनसे जड़ें गलने लगती हैं, और पौधे सूख जाते हैं। इसके लिए खेत में फसल अवशेष न छोड़ें, क्योंकि ये रोगों को बढ़ावा देते हैं। अगर कोई पौधा रोगग्रस्त दिखे, तो उसे जड़ से उखाड़कर जला दें। फिर कार्बेन्डाजिम का 0.2% घोल बनाकर जड़ों के पास छिड़कें। ये उपाय रोग को फैलने से रोकता है। गाँव में लोग कहते हैं, बीमारी को शुरू में ही दबाओ, तो मेहनत बेकार नहीं जाएगी।

तना गलन से बचाव

तना गलन एक फफूंद वाला रोग है, जो नमी और गर्मी में तेजी से फैलता है। इससे पौधे का तना कमजोर होकर गलने लगता है। इसे रोकने के लिए फसल चक्र अपनाएँ – हर साल चने की जगह दूसरी फसल बोएँ। बुवाई के 50-60 दिन बाद कार्बेन्डाजिम और मैंकोजेब का छिड़काव करें। ये तरीका तने को मजबूत रखेगा और फसल को बचाएगा। सही समय पर सही दवा आपकी मेहनत की रक्षा करेगी।

अंगमारी रोग का जवाब

अंगमारी रोग ठंडे इलाकों में ज्यादा परेशान करता है। ये फफूंद से फैलता है और पौधे को सुखा देता है। इसके लिए पूसा 3022 जैसी प्रतिरोधी किस्में चुनें। बीज को कार्बेन्डाजिम और मैंकोजेब से उपचारित करें। साथ ही, 0.2% कार्बेन्डाजिम घोल का छिड़काव करें। ये उपाय रोग को जड़ से खत्म करेंगे। फसल चक्र और जल निकासी का ध्यान रखें, तो अंगमारी की चिंता खत्म हो जाएगी।

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  • Shashikant

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