Animal husbandry: आजकल जलवायु परिवर्तन का असर खेती-किसानी और पशुपालन पर भी दिख रहा है। गाय-भैंस जैसे पशुओं से निकलने वाली मीथेन गैस ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी वजह बन रही है। ये हमारे गाँव के लिए चुनौती तो है ही, साथ ही टिकाऊ पशुपालन का सवाल भी खड़ा करती है। दुनिया अब नेट जीरो उत्सर्जन की तरफ बढ़ रही है, और इसीलिए मीथेन को कम करने के तरीके खोजे जा रहे हैं। इसी राह में भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के वैज्ञानिकों ने कमाल कर दिखाया है।
मीथेन गैस का मसला क्या है
IVRI की पशु पोषण विभाग की वैज्ञानिक डॉ. अंजू काला बताती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग हवा में कुछ गैसों के बढ़ने से होती है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन का हाथ सबसे बड़ा है। मीथेन तो खासतौर पर गर्मी बढ़ाने में माहिर है। ये गैस धान के खेतों, जुगाली करने वाले पशुओं, कूड़े के ढेर और जीवाश्म ईंधन से निकलती है। जब गाय-भैंस चारा या दाना हजम करते हैं, तो उनके पेट में मीथेन बनती है, जो बाहर हवा में चली जाती है। IVRI की लैब में 30 साल से इस पर रिसर्च चल रही थी, और अब जाकर एक ऐसा देसी नुस्खा तैयार हुआ है, जो पशुओं से मीथेन कम करता है।
मीथेन कम करने के देसी उपाय
डॉ. अंजू कहती हैं कि भारत में हर साल 9 से 10 टेरा ग्राम मीथेन हवा में घुलती है, जिसमें 16-18 फीसदी पशुओं से आती है। इसमें भी 80-90 फीसदी गाय और भैंस की हिस्सेदारी है। इसे कम करने के लिए तीन तरीके अपनाए जाते हैं। पहला है राशन बैलेंसिंग—यानी पशुओं को सही चारा और दाना देना, ताकि पेट में गैस कम बने। दूसरा तरीका है केमिकल्स का इस्तेमाल, लेकिन ये लंबे वक्त तक खिलाने से पशुओं की सेहत पर असर डाल सकता है। तीसरा और सबसे पक्का उपाय है प्लांट सेकेंडरी मेटाबोलाइट्स। ये कुछ खास पौधों से मिलने वाले तत्व हैं, जो उनकी अपनी सुरक्षा के लिए बनते हैं। रिसर्च में पता चला कि इन्हें पशुओं को खिलाने से मीथेन कम होती है, और चूंकि ये प्राकृतिक हैं, तो नुकसान भी नहीं होता।
IVRI का ‘मेथलो’ है कमाल का नुस्खा
इन्हीं पौधों के आधार पर IVRI ने ‘मेथलो’ नाम का उत्पाद बनाया है। इसे 120 दिन तक पशुओं को खिलाने के बाद देखा गया कि मीथेन गैस 16 फीसदी तक कम हो गई। गाँव के किसान भाइयों के लिए ये बड़ी राहत की बात है। ये न सिर्फ हवा को साफ रखेगा, बल्कि पशुओं की सेहत भी ठीक रखेगा। इसके अलावा, अगर चारे में पोषण सही रखा जाए, तो दूध और मांस की पैदावार भी बढ़ सकती है।
कितना देना है, कितना खर्च आएगा
‘मेथलो’ की डोज की बात करें तो 300-350 किलो वजन वाले पशु को रोज 30 ग्राम देना है। एक पशु पर दिन का खर्च बस 6 रुपये आता है। इतने कम पैसे में मीथेन कम करना और खेती को टिकाऊ बनाना बड़ी बात है। IVRI अब इस पर और रिसर्च कर रहा है कि इसका पशुओं पर दूसरा क्या असर पड़ता है। गाँव में अगर सोलर पैनल या बायोगैस प्लांट हो, तो इसे और सस्ते में इस्तेमाल कर सकते हैं।
गाँव के लिए फायदे का सौदा
ये नुस्खा हमारे गाँव के पशुपालकों के लिए वरदान है। मीथेन कम होगी तो हवा साफ रहेगी, और दुनिया भर में चल रहे नेट जीरो के सपने में हमारा भी योगदान होगा। साथ ही, पशुओं की सेहत और पैदावार बढ़ने से किसानों की कमाई भी बढ़ेगी। तो भाइयों, अगर पशुपालन कर रहे हो, तो IVRI के इस देसी तरीके को जरूर आजमाओ।
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