Wheat Crop Tips : भाइयों, हमारे गाँवों में गेहूं की फसल अब पकने की ओर बढ़ रही है। मेहनत रंग ला रही है, लेकिन मार्च का महीना कुछ मुसीबतें भी साथ लाता है। इस समय काला, भूरा और पीला रतुआ रोग गेहूं के खेतों में सिर उठा सकता है। ये कवक जनित रोग हवा के ज़रिए फैलता है और पत्तियों पर काले, भूरे या पीले धब्बे बना देता है। अगर वक्त रहते ध्यान न दिया जाए, तो सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के वैज्ञानिकों ने इसके लिए एडवाइज़री जारी की है, ताकि हमारे किसान भाई नुकसान से बच सकें। आइए, इस रोग के लक्षण और बचाव के आसान तरीके समझते हैं, ताकि फसल लहलहाती रहे।
किसानों के लिए वैज्ञानिकों की सलाह
पूसा संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों को अलर्ट रहने को कहा है। मार्च में मौसम बदल रहा है, और गेहूं की फसल पकने के करीब है। ऐसे में रतुआ की निगरानी बहुत ज़रूरी है। रोज़ खेत में जाकर पत्तियों को चेक करें। अगर धब्बे दिखें, तो फौरन कदम उठाएँ। वैज्ञानिकों का कहना है कि सही समय पर दवा का छिड़काव और खेत की सफाई से 80% नुकसान बचाया जा सकता है। हमारे मेहनती किसानों के लिए ये सलाह सोने जैसी है। थोड़ी सावधानी से सारी मेहनत बेकार जाने से बच सकती है।
रतुआ रोग क्या है और इसके लक्षण
रतुआ एक कवक से होने वाला रोग है, जो गेहूं की पत्तियों और तनों को निशाना बनाता है। मार्च में मौसम बदलने से ये तेज़ी से फैलता है। इसके तीन मुख्य प्रकार हैं—पीला रतुआ, भूरा रतुआ और काला रतुआ। पीला रतुआ (Yellow Rust) पत्तियों पर पीले धब्बे बनाता है, जो बाद में काले हो जाते हैं। ये दिसंबर से मार्च तक सबसे ज्यादा परेशान करता है।
भूरा रतुआ (Brown Rust) और काला रतुआ (Black Rust) भी पत्तियों पर धब्बे छोड़ते हैं, जिससे फसल कमज़ोर पड़ जाती है। अगर खेत में पत्तियाँ पीली पड़ रही हों या काले-भूरे निशान दिखें, तो समझ लें कि फसल की सेहत खतरे में है। इसके अलावा कंडुआ, भभूतिया और टुंडू जैसे रोग भी गेहूं को नुकसान पहुँचाते हैं।
मौसम और रतुआ का कनेक्शन
वैज्ञानिकों का कहना है कि रतुआ का फैलाव मौसम पर निर्भर करता है। पीला रतुआ 10-20 डिग्री सेल्सियस तापमान में पनपता है, और 25 डिग्री से ऊपर ये रुक जाता है। भूरा रतुआ 15-25 डिग्री के बीच नमी वाली जलवायु में बढ़ता है। वहीं, काला रतुआ 20 डिग्री से ऊपर और नमी रहित मौसम में फलता-फूलता है। मार्च में तापमान और नमी का उतार-चढ़ाव रतुआ के लिए माकूल माहौल बनाता है। हमारे गाँवों में मौसम की मार कोई नई बात नहीं, लेकिन इस बार सावधानी बरतना ज़रूरी है। खेत की रोज़ निगरानी करें, ताकि रोग शुरू होते ही पकड़ में आ जाए।
रतुआ से बचाव के आसान उपाय
रतुआ से फसल को बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ कारगर तरीके सुझाए हैं। अगर खेत में रतुआ के धब्बे दिखें, तो डाइथेन एम-45 का छिड़काव करें। 2.5 ग्राम दवा को 1 लीटर पानी में मिलाएँ और पौधों पर अच्छे से छिड़कें। ये कवक को काबू करने में मदद करता है। हमारे गाँवों में लोग पहले से ही खेत की देखभाल के लिए ऐसे नुस्खे आज़माते हैं।
इसके अलावा, पत्तियों पर धब्बे वाली टहनियों को काटकर हटा दें, ताकि रोग आगे न फैले। खेत को साफ रखें और हवा का बहाव ठीक रखें, क्योंकि रतुआ हवा से ही एक पौधे से दूसरे तक पहुँचता है। अगर हालात बिगड़ें, तो नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विभाग से तुरंत सलाह लें। हमारे यहाँ कहते हैं—वक्त पर इलाज, फसल का राज।
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