किसान साथियों, आपकी मेहनत से गेहूं की सुनहरी फसल खेतों से घर तक पहुँचती है। मगर अप्रैल-मई में गेहूं की कटाई के बाद खेत खाली हो जाते हैं। इस खाली समय में अगर कुछ न किया जाए, तो मिट्टी की ताकत कम हो सकती है। बारिश से पहले खेत को तैयार करने और भूमि को सुधारने का ये सही मौका है। इसके लिए 3 आसान और देसी उपाय हैं – लवण सहनशील धान लगाना, ढैंचा-लोबिया-मूंग की बुवाई करना, और इन हरी खादों को खेत में जुताई कर देना। ये तरीके मिट्टी को ताकत देंगे और अगली फसल को बंपर बनाएँगे। आइए इन उपायों को समझें।
खेत खाली क्यों न छोड़ें
गेहूं कटाई के बाद खेत को खाली छोड़ने से मिट्टी सख्त हो जाती है, नमी चली जाती है, और खरपतवार बढ़ते हैं। बारिश का पानी बह जाता है, और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती है। गाँव में पुराने लोग कहते हैं कि खाली खेत को मिट्टी का दुश्मन मत बनाओ। इसे हरा-भरा रखने से नाइट्रोजन, कार्बन, और जैविक तत्व बढ़ते हैं। इन 3 उपायों से आप खेत को तैयार रख सकते हैं और अगली फसल में फायदा ले सकते हैं।
उपाय 1: लवण सहनशील धान की बुवाई
अगर आपके खेत में नमक (लवण) की मात्रा ज्यादा है या पानी का जलभराव होता है, तो लवण सहनशील धान लगाएँ। ‘CSR-10’, ‘CSR-36’, या ‘पusa बासमती-1509’ जैसी किस्में गर्मी और नमक को झेल लेती हैं। मई-जून में नर्सरी बनाएँ और जुलाई में रोपाई करें। प्रति हेक्टेयर 20-25 किलो बीज चाहिए। खेत में 2-3 बार हल चलाकर 5-7 टन गोबर की खाद डालें। ये धान मिट्टी की ऊपरी परत से नमक को कम करता है और पानी को सोखकर जलभराव ठीक करता है। साथ ही, आपको चावल की फसल भी मिलेगी।
उपाय 2: ढैंचा, लोबिया, और मूंग लगाएँ
खेत को हरा-भरा करने के लिए ढैंचा, लोबिया, और मूंग जैसी फसलें बोएं। ये हरी खाद वाली फसलें हैं, जो मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाती हैं। ढैंचा तेजी से बढ़ता है और 40-50 दिन में तैयार हो जाता है। लोबिया और मूंग से दाल भी मिलती है। मई में बुवाई करें—ढैंचा के लिए 25-30 किलो, लोबिया के लिए 20-25 किलो, और मूंग के लिए 15-20 किलो बीज प्रति हेक्टेयर लें। कतार से कतार 30 सेमी की दूरी रखें। हल्की बारिश या एक सिंचाई से ये उगने लगते हैं। ये मिट्टी को ढीला करते हैं और खरपतवार को दबाते हैं।
उपाय 3: हरी खाद को जुताई में मिलाएँ
ढैंचा, लोबिया, या मूंग के पौधे जब 40-50 दिन के हो जाएँ और फूल आने शुरू हों, तो इन्हें खेत में जुताई कर दें। ट्रैक्टर या बैलों से हल चलाकर हरे पौधों को मिट्टी में मिलाएँ। इसके बाद 10-15 दिन तक खेत को नम रखें, ताकि पौधे सड़कर खाद बन जाएँ। ये तरीका मिट्टी में जैविक पदार्थ बढ़ाता है, पानी रोकने की ताकत देता है, और अगली फसल के लिए खुराक तैयार करता है। ढैंचा से प्रति हेक्टेयर 20-25 टन हरी खाद मिलती है, जो 50-60 किलो नाइट्रोजन के बराबर है। ये रासायनिक खाद का सस्ता और देसी विकल्प है।
बीज कहाँ से लें और लागत
लवण सहनशील धान के बीज कृषि केंद्र, नर्सरी, या ऑनलाइन इंडिया मार्ट से 50-100 रुपये किलो मिलते हैं। ढैंचा, लोबिया, और मूंग के बीज गाँव की दुकानों या सरकारी बीज भंडार से 40-80 रुपये किलो में उपलब्ध हैं। प्रति हेक्टेयर लागत 2,000-5,000 रुपये आती है, जिसमें बीज और हल्की जुताई शामिल है। अगर बैल हों, तो जुताई मुफ्त। ये सस्ता और आसान तरीका है, जो मिट्टी को सालों तक फायदा देगा।
देखभाल और फायदे
इन फसलों को ज्यादा पानी या खाद की जरूरत नहीं। हल्की सिंचाई से काम चल जाता है। खरपतवार निकालने के लिए 20-25 दिन बाद गुड़ाई करें। कीट कम लगते हैं, फिर भी नीम का तेल छिड़क सकते हैं। लवण सहनशील धान से 20-30 क्विंटल चावल मिल सकता है, जिसकी कीमत 40,000-50,000 रुपये होगी। ढैंचा और हरी खाद से मिट्टी की ताकत बढ़ेगी, जिससे अगली फसल में 20-30% ज्यादा पैदावार होगी। लागत कम और मुनाफा दोगुना!
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