Shriram 303 गेहूं की खेती: शानदार उत्पादन के लिए किसानों की पहली पसंद, एक हेक्टेयर में होगा 90 कुंतल

Shriram 303 Gehu: किसान भाइयों, भारत में गेहूं की खेती किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आय का स्रोत है। हर किसान चाहता है कि कम समय में अधिक उत्पादन मिले और अच्छी आमदनी हो। आज हम आपको Shriram 303 गेहूं की किस्म के बारे में विस्तार से बताएंगे, जो अपनी जबरदस्त उपज क्षमता, रोग प्रतिरोधकता और बाजार में शानदार मांग के कारण किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है। अगर आप भी बेहतर मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो इस किस्म की खेती जरूर करें।

Shriram 303 गेहूं की किस्म की विशेषताएँ

Shriram 303 एक उच्च गुणवत्ता वाली हाइब्रिड किस्म है जो मोटे और सुनहरे दानों के लिए जानी जाती है। यह किस्म केवल 112 से 120 दिनों में पूरी तरह पक जाती है। इसका दाना भरपूर और चमकीला होता है, जो आटे, रोटी और बेकरी उत्पादों के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस किस्म की औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है। Shriram 303 झुलसा, रतुआ और पीलापन जैसी बीमारियों के प्रति अच्छी प्रतिरोधकता रखती है। यह किस्म सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों और मध्यम सूखे वाले इलाकों के लिए भी उपयुक्त है।

खेत की तैयारी और उपयुक्त मिट्टी

इस गेहूं का शानदार उत्पादन लेने के लिए खेत की तैयारी सही तरीके से करना बहुत जरूरी है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह पलट जाए। इसके बाद दो से तीन बार देसी हल या रोटावेटर से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। खेत की अंतिम जुताई करते समय 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट अच्छी तरह मिला दें। खेत को समतल और जल निकासी योग्य बनाना जरूरी है। इस किस्म के लिए दोमट, काली दोमट या हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसका pH मान 6.5 से 7.5 के बीच हो।

बुवाई का समय, बीज दर और विधि

Shriram 303 गेहूं की बुवाई का आदर्श समय 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक होता है। इस समय तापमान 22 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 100 से 120 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को बुवाई से पहले थाइरम या कार्बेन्डाजिम जैसे फफूंदनाशक से उपचारित करना जरूरी है ताकि फसल फंगल बीमारियों से सुरक्षित रहे। बुवाई कतारों में करनी चाहिए, जिसमें कतार से कतार की दूरी 20 से 22 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 6 सेंटीमीटर हो। इससे पौधों को पर्याप्त पोषण, धूप और हवा मिलती है, जो उत्पादन बढ़ाने में मदद करती है।

खाद और सिंचाई प्रबंधन

बुआई के समय 120 किलो DAP, 60 किलो MOP, और 150 किलो यूरिया/हेक्टेयर डालें। शेष यूरिया दो हिस्सों में (पहली सिंचाई और बालियां निकलने पर) दें। जैविक खेती के लिए 100 किलो नीम खली और 5 किलो ट्राइकोडर्मा/हेक्टेयर मिलाएँ। पहली सिंचाई बुआई के 20-22 दिन बाद (3-4 पत्ती अवस्था) करें। इसके बाद हर 8-10 दिन पर 5-6 सिंचाई करें। ड्रिप सिस्टम से 20% पानी और 10% लागत बचती है। जलभराव से बचें, क्योंकि यह जड़ सड़न का कारण बनता है।

रोग नियंत्रण और फसल देखभाल

Shriram 303 किस्म सामान्यतः रोग प्रतिरोधी है लेकिन समय-समय पर निगरानी जरूरी है। झुलसा रोग के लक्षण दिखते ही ट्राईसाइक्लाजोल या कार्बेन्डाजिम जैसी दवाइयों का छिड़काव करें। गेरुई या रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए मैनकोजेब का उपयोग करें। दीमक के खतरे से बचने के लिए बुवाई के समय क्लोरपायरीफॉस का प्रयोग करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 25 से 30 दिन बाद निराई गुड़ाई करें या हर्बीसाइड का छिड़काव करें ताकि फसल को पूरा पोषण मिल सके।

कटाई, भंडारण और लाभ

जब फसल की 80 प्रतिशत बालियां सुनहरी हो जाएं और दानों की नमी 20 प्रतिशत से कम हो जाए, तब फसल की कटाई करें। कटाई के बाद दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाकर उनकी नमी 12 प्रतिशत से कम कर लें ताकि भंडारण के समय खराबी न हो। Shriram 303 के मोटे और चमकीले दानों की बाजार में काफी मांग रहती है, जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलती है। आटा मिलों और बेकरी कंपनियों में इस किस्म के गेहूं को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे किसानों को ज्यादा लाभ मिल सकता है।

किसान भाइयों, Shriram 303 गेहूं की खेती अपनाकर आप कम समय में अधिक उत्पादन और शानदार मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। सही तकनीक, समय पर सिंचाई और खाद प्रबंधन से आप अपने खेतों को सोना बना सकते हैं। इस फसल को अपनाइए, वैज्ञानिक तरीके से खेती करिए और अपने सपनों को साकार कीजिए। याद रखें, मेहनत और सही बीज का मेल ही सफलता की असली कुंजी है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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