कालानमक धान की खेती: जिसे प्यार से बुद्धा चावल भी कहतें हैं, सिद्धार्थनगर की सुगंध, पूरी दुनिया में मशहूर

Kala Namak Dhan Ki Kheti: सिद्धार्थनगर का कालानमक धान, जिसे प्यार से “बुद्ध का चावल” कहा जाता है, अपनी अनोखी सुगंध और स्वाद के लिए विश्व भर में जाना जाता है। GI टैग से सजा यह सुगंधित चावल उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले की पहचान है। जापान, सिंगापुर, और मध्य पूर्व के बाजारों में इसकी मांग इसे किसानों के लिए सोने की खेती बनाती है। छोटे दाने, मुलायम गूदा, और पौष्टिक गुणों से भरपूर कालानमक धान ने सिद्धार्थनगर को वैश्विक मंच पर ला खड़ा किया है। इसकी खेती से न केवल किसान लाखों कमा रहे हैं, बल्कि पूरा देश इसकी सुगंध से महक रहा है। इस लेख में हम कालानमक धान की खेती की सरल और प्रभावी तकनीक बताएंगे।

सिद्धार्थनगर का गौरव: कालानमक की अनोखी खुशबू

कालानमक धान की तीव्र सुगंध इसे बासमती से भी अलग बनाती है। इसके छोटे, चमकदार दाने पकने पर खीर, बिरयानी, और अन्य व्यंजनों को स्वाद से भर देते हैं। इसमें 6-7% प्रोटीन, आयरन, और विटामिन बी की अच्छी मात्रा होती है, जो इसे स्वास्थ्य के लिए भी खास बनाती है। GI टैग (2018) ने इसकी मार्केट वैल्यू को दोगुना कर दिया है। सिद्धार्थनगर में स्थापित कॉमन फैसिलिटी सेंटर ने इसके प्रसंस्करण और पैकेजिंग को और बेहतर किया है। UP_ODOP ने साझा किया कि कालानमक चावल ने स्थानीय किसानों की आय को तीन गुना बढ़ाया है। यह खेती छोटे किसानों के लिए कम लागत और उच्च मुनाफे का रास्ता है।

मिट्टी और मौसम: सुगंधित फसल की नींव

कालानमक धान की खेती के लिए चिकनी दोमट या मटियार मिट्टी सबसे अच्छी है, जिसमें जल धारण क्षमता अधिक हो। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 होना चाहिए। सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, और बस्ती की गंगा-घाघरा की मिट्टी इसके लिए आदर्श है। अगर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ कम हों, तो गोबर की खाद डालें। यह खरीफ फसल जून-जुलाई में बोई जाती है, जब तापमान 20-35 डिग्री सेल्सियस हो। मॉनसून की बारिश इसके लिए जरूरी है, लेकिन जलभराव से बचें। सिद्धार्थनगर में किसान कालानमक के बाद बरसीम या मसूर की खेती करते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। अपने नजदीकी कृषि केंद्र पर मिट्टी की जाँच करवाएं।

बुवाई का कमाल: सुगंधित खेत की शुरुआत

खेत की तैयारी के लिए 2-3 बार गहरी जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं। प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें। कालानमक धान की बुवाई नर्सरी या सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन (SRI) विधि से की जाती है। प्रति हेक्टेयर 30-40 किलो बीज पर्याप्त हैं। बीज को बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति किलो) से उपचारित करें। नर्सरी में 12-14 दिन के पौधे तैयार करें, फिर 25 सेंटीमीटर दूरी पर कतारों में रोपें। जून के मध्य से जुलाई के पहले सप्ताह तक बुवाई करें। SRI विधि से 20% पानी और 30% लागत बचती है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि पौधे मजबूत हों।

पोषण का रहस्य: उर्वरक से लहलहाए खेत

कालानमक धान की अच्छी उपज के लिए संतुलित उर्वरक जरूरी हैं। प्रति हेक्टेयर 120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस, और 40 किलो पोटाश डालें। बुवाई के समय यूरिया (260 किलो), DAP (130 किलो), और MOP (67 किलो) की पहली खुराक डालें। जैविक खेती के लिए 15 किलो नील हरित शैवाल और 5 किलो आज़ोटोबैक्टर डालें। हर दो साल में 25 किलो जिंक सल्फेट डालें। नाइट्रोजन की दो खुराकें (रोपाई के 20 और 40 दिन बाद) डालें। उर्वरक डालने के बाद हल्की सिंचाई करें। सिद्धार्थनगर के किसान जैविक खेती से 15% अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। अपने कृषि सलाहकार से उर्वरक योजना बनवाएं।

सिंचाई और खरपतवार: सुगंध को रखें बरकरार

कालानमक धान को नियमित सिंचाई की जरूरत होती है। बुवाई के बाद पहली सिंचाई तुरंत करें। मॉनसून में बारिश पर निर्भर रहें, लेकिन सूखे की स्थिति में हर 5-7 दिन में सिंचाई करें। ड्रिप सिंचाई से पानी की 20% बचत होती है। खरपतवार उपज को 25% तक कम कर सकते हैं। बुवाई के 15-20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। पेंडीमेथालिन (1 लीटर प्रति 200 लीटर पानी) का छिड़काव बुवाई के 72 घंटे बाद करें। जैविक खेती में मल्चिंग और बार-बार गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण से सुगंधित दाने सुरक्षित रहते हैं।

कीट और रोग: फसल की रक्षा, मुनाफे की गारंटी

कालानमक धान में झोंका (राइस ब्लास्ट), शीथ ब्लाइट, और स्टेम बोरर जैसे कीट हो सकते हैं। झोंका रोग के लिए हेक्साकोनाज़ोल (1 लीटर प्रति 500 लीटर पानी) का छिड़काव करें। शीथ ब्लाइट के लिए कार्बेन्डाज़िम (500 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी) का उपयोग करें। स्टेम बोरर के लिए कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड (500 ग्राम प्रति हेक्टेयर) डालें। नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) कीटों और कवकों से बचाव करता है। सिद्धार्थनगर में किसान जैविक कीटनाशकों से रोग नियंत्रण कर रहे हैं। नियमित खेत की निगरानी करें और अपने कृषि सलाहकार से संपर्क रखें।

कटाई का उत्सव: सुगंधित चावल का स्वागत

कालानमक धान की कटाई बुवाई के 145-150 दिन बाद, नवंबर-दिसंबर में शुरू होती है। जब दाने कठोर और पुआल सुनहरा हो, तब काटें। हार्वेस्टर या पारंपरिक चाकू का उपयोग करें। कटाई के बाद डंठलों को 3-4 दिन सूखने दें, फिर थ्रेसिंग करें। प्रति हेक्टेयर 4-5 टन उपज मिलती है। चावल को 12-13% नमी पर स्टोर करें। सिद्धार्थनगर में किसान कालानमक चावल को पैकेजिंग कर निर्यात के लिए तैयार करते हैं। GI टैग के कारण यह चावल प्रीमियम कीमत पर बिकता है।

लागत और कमाई: सुगंध से समृद्धि

कालानमक धान की खेती की लागत प्रति हेक्टेयर 50,000-60,000 रुपये है, जिसमें बीज (8,000 रुपये), उर्वरक (15,000 रुपये), सिंचाई (10,000 रुपये), और मजदूरी (20,000 रुपये) शामिल हैं। प्रति हेक्टेयर 4-5 टन उपज 40-60 रुपये प्रति किलो बिकती है, जिससे 1.6-3 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। निर्यात बाजार में इसकी कीमत 100-120 रुपये प्रति किलो तक जाती है। कालानमक चावल की खेती, इसके व्यंजन (जैसे खीर, बिरयानी), और स्वास्थ्य लाभ शेयर करें, ताकि किसान आकर्षित हों।

आज बोएं, दुनिया को महकाएं

कालानमक धान की खेती सिद्धार्थनगर के किसानों के लिए गर्व और समृद्धि का प्रतीक है। इसकी सुगंध, GI टैग, और वैश्विक मांग इसे हर किसान का सपना बनाती है। चाहे आप सिद्धार्थनगर की उपजाऊ जमीन पर हों या बिहार के खेतों में, यह फसल आपके खेत को सुगंधित सोने में बदल सकती है। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से प्रमाणित बीज और सलाह लें, जैविक तरीके अपनाएं, और नियमित देखभाल करें। आज ही कालानमक धान की खेती शुरू करें और पूरी दुनिया को अपनी सुगंध से महकाएं। यह सिर्फ एक चावल नहीं, सिद्धार्थनगर की शान और आपकी कमाई का आधार है!

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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