Pusa Basmati 1121 and 1979 Variety: बासमती चावल अपनी लंबी दाने, अनोखी सुगंध, और स्वाद के लिए दुनिया भर में मशहूर है। पूसा बासमती 1121 और पूसा बासमती 1979 भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा 979 विकसित दो ऐसी उन्नत किस्में हैं, जो किसानों को कम पानी और कम लागत में उच्च पैदावार और मुनाफा देती हैं।
ये किस्में बिरयानी, पुलाव जैसे व्यंजनों के लिए प्रीमियम चावल की मांग पूरी करती हैं और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंची कीमत पाती हैं। पूसा बासमती 1121 कम पानी की जरूरत और लंबे दानों के लिए जानी जाती है, जबकि पूसा बासमती 1979 खरपतवार नाशक सहनशीलता और सीधी बुवाई की खासियत रखती है। इस लेख में दोनों किस्मों की विशेषताएं, फायदे, और खेती के बारे में बताया गया है।
पूसा बासमती 1121
पूसा बासमती 1121 अपनी असाधारण लंबाई, सुगंध, और स्वाद के लिए मशहूर है। ये किस्म 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 4.5 टन (45 क्विंटल) तक पैदावार देती है। इसके दाने लंबे और पतले होते हैं, जो पकने के बाद भी अपनी लंबाई बनाए रखते हैं। पके हुए चावल के दाने कच्चे दानों से 2 से 2.5 गुना तक बढ़ जाते हैं, जो इसे बिरयानी और पुलाव जैसे व्यंजनों के लिए आदर्श बनाता है।
ये चावल चिपचिपे नहीं होते, जिससे ये विभिन्न भारतीय व्यंजनों के लिए उपयुक्त हैं। पारंपरिक बासमती किस्मों की तुलना में इसे कम पानी की जरूरत पड़ती है, जो पानी की कमी वाले इलाकों के लिए वरदान है। इसकी उच्च बाजार मांग और प्रीमियम कीमत किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाती है।
पूसा बासमती 1121 की खेती के फायदे
पूसा बासमती 1121 एक प्रकाश-असंवेदनशील किस्म है, जिसे अलग-अलग मौसमों में उगाया जा सकता है। ये किस्म कम पानी में अच्छी पैदावार देती है, जिससे सिंचाई का खर्च बचता है और पर्यावरण पर कम दबाव पड़ता है। इसकी खेती के लिए बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त है, जिसमें पुरानी गोबर खाद या जैविक खाद मिलाकर मिट्टी को और उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसके लंबे और सुगंधित दाने बाजार में प्रीमियम कीमत पर बिकते हैं, जिससे किसानों की आय बढ़ती है। ये किस्म बिरयानी, पुलाव, और अन्य चावल आधारित व्यंजनों के लिए पहली पसंद है। प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करने से पैदावार और चावल की गुणवत्ता में और सुधार होता है, जो छोटे और मझोले किसानों के लिए फायदेमंद है।
पूसा बासमती 1979
पूसा बासमती 1979 पूसा बासमती 1121 से विकसित एक उन्नत किस्म है, जो खरपतवार नाशक इमाज़ेथापायर 10% SL के प्रति सहनशील है। ये किस्म 130-133 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो पूसा बासमती 1121 से 12-15 दिन कम है। इसकी औसत उपज 45.77 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो सिंचित रोपाई के लिए उपयुक्त है।
ये सीधी बुवाई के लिए भी आदर्श है, जिससे पानी की बचत होती है और पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है। ये गैर-जीएम (आनुवंशिक रूप से संशोधित नहीं) किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने खरपतवार सहनशीलता के साथ विकसित किया है। इसकी सुगंध, स्वाद, और दाने की लंबाई पूसा बासमती 1121 जैसी ही शानदार है, जो इसे प्रीमियम बाजार में लोकप्रिय बनाती है।
पूसा बासमती 1979 की खेती के फायदे
पूसा बासमती 1979 की सबसे बड़ी खासियत इसकी इमाज़ेथापायर खरपतवार नाशक सहनशीलता है, जो खरपतवार नियंत्रण को आसान और किफायती बनाती है। इससे रासायनिक खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल कम होता है, जो जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है। सीधी बुवाई की सुविधा के कारण ये किस्म पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है। इसकी तेज परिपक्वता (130-133 दिन) किसानों को जल्दी फसल लेने और अगली फसल की तैयारी का मौका देती है। इसके दाने लंबे, सुगंधित, और गैर-चिपचिपे होते हैं, जो बिरयानी और अन्य व्यंजनों के लिए उपयुक्त हैं। उच्च उपज और बाजार मांग इसे छोटे और मझोले किसानों के लिए मुनाफेदार बनाती है।
दोनों किस्मों की खेती के लिए सलाह
पूसा बासमती 1121 और 1979 की खेती के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए। मिट्टी की जांच कराएं और बलुई-दोमट मिट्टी में पुरानी गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट मिलाएं। पूसा बासमती 1121 के लिए पानी का प्रबंधन सावधानी से करें, क्योंकि ये कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है। पूसा बासमती 1979 के लिए इमाज़ेथापायर खरपतवार नाशक का सही मात्रा में उपयोग करें और सीधी बुवाई का तरीका अपनाएं।
प्रमाणित बीज भरोसेमंद जगह, जैसे कृषि विज्ञान केंद्र या IARI से खरीदें। बुआई के समय पंक्तियों के बीच 20-25 सेमी दूरी रखें, ताकि पौधों को पर्याप्त धूप और हवा मिले। खरपतवार और कीटों से बचाव के लिए जैविक उपाय, जैसे नीम तेल, का उपयोग करें। नजदीकी कृषि केंद्र से इन किस्मों की खेती की जानकारी और सरकारी योजनाओं का लाभ लिया जा सकता है।
पर्यावरण और मुनाफे का संतुलन
पूसा बासमती 1121 और 1979 दोनों ही किस्में कम पानी और संसाधनों में उच्च पैदावार देती हैं, जो पर्यावरण संरक्षण और जैविक खेती को बढ़ावा देती हैं। पूसा बासमती 1121 की कम पानी की जरूरत और पूसा बासमती 1979 की सीधी बुवाई और खरपतवार सहनशीलता पानी की कमी वाले क्षेत्रों में खेती को आसान बनाती हैं। इनके लंबे, सुगंधित, और गैर-चिपचिपे दाने बिरयानी, पुलाव, और अन्य व्यंजनों के लिए प्रीमियम बाजार में पहली पसंद हैं। इनकी उच्च मांग और कीमत किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाती है। ये किस्में छोटे और मझोले किसानों के लिए आर्थिक मजबूती का रास्ता खोलती हैं और भारत को प्रीमियम बासमती चावल के निर्यात में और मजबूत बनाती हैं।
आधुनिक खेती की ओर कदम
पूसा बासमती 1121 और 1979 भारतीय कृषि की उन्नत तकनीकों का प्रतीक हैं। ये किस्में न सिर्फ उच्च पैदावार और मुनाफा देती हैं, बल्कि कम पानी और रासायनिक उपयोग से पर्यावरण को भी बचाती हैं। पूसा बासमती 1121 अपनी प्रीमियम गुणवत्ता और पूसा बासमती 1979 अपनी खरपतवार सहनशीलता और तेज परिपक्वता के कारण छोटे किसानों के लिए वरदान हैं। इन किस्मों को अपनाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं और बासमती चावल की वैश्विक मांग को पूरा कर सकते हैं। नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या IARI से इन किस्मों के बीज और खेती की जानकारी लेकर आधुनिक खेती की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है।
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