आलू की ‘कुफरी लवकर’ उन्नत किस्म दे रही है 30 टन से अधिक उपज, किसानों की बढ़ी कमाई!

भारतीय थाली की रानी और किसानों की दौलत माने जाने वाले आलू की खेती अब छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए नई संभावनाएं लेकर आई है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा प्रमाणित ‘कुफरी लवकर’ किस्म ने आलू उत्पादन में क्रांति ला दी है। यह किस्म न सिर्फ 30-35 टन प्रति हेक्टेयर की भरपूर पैदावार देती है, बल्कि चिप्स, फ्रेंच फ्राइज और प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग के लिए भी बेहद उपयुक्त है। आइए जानते हैं कैसे आप वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

क्यों खास है कुफरी लवकर किस्म?

यह आलू की वह किस्म है जिसने छत्तीसगढ़ के किसानों की किस्मत बदल दी है। इसकी खासियत यह है कि यह पारंपरिक किस्मों के मुकाबले ज्यादा उपज देती है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। चाहे घरों में सब्जी के रूप में इस्तेमाल हो या फिर बड़े फूड प्रोसेसिंग प्लांट्स में चिप्स बनाने के लिए, इसकी गुणवत्ता हर जगह सराही जाती है।

बुवाई का सही तरीका और बीज प्रबंधन

कुफरी लवकर की सफल खेती के लिए बीज का चुनाव सबसे अहम है। 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है और बीज के लिए 40-50 ग्राम वाले आलू सबसे उपयुक्त माने गए हैं। बुवाई से पहले बीजोपचार जरूर करें, इसके लिए 2.5 ग्राम कॉम्बिनेजिम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपयोग करना चाहिए।

खेत में पंक्तियों की दूरी 90 सेमी x 30 सेमी (त्रिभुजाकार प्रारूप) रखें। इससे पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और उनका विकास बेहतर होता है।

उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन

आलू की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन जरूरी है। प्रति हेक्टेयर 20-25 टन गोबर की खाद के साथ 150 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फॉस्फोरस और 60 किग्रा पोटाश देना चाहिए।

सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक सबसे कारगर है। हर दो दिन में 30 मिनट तक सिंचाई करें और साथ ही एनपीके (19:19:19, 12:61:00, 13:0:45) का घोल देकर पौधों को पूरा पोषण दें।

फसल को खरपतवार से बचाने के लिए बुवाई के 20 दिन बाद और 35 दिन बाद हेंड वीडिंग जरूर करें। कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड, मेटालैक्सिल, रिडोमिल और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का उपयोग वैज्ञानिक मात्रा में करें।

मार्केट डिमांड और मुनाफे का गणित

आलू भारत में हर मौसम और हर क्षेत्र में डिमांड वाली फसल है। कुफरी लवकर किस्म की खास बात यह है कि यह प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग के लिए बेहद उपयुक्त है, जिससे इसकी बिक्री पर अच्छा दाम मिलता है। अगर उपज 30-35 टन प्रति हेक्टेयर है और बाजार भाव 10-15 रुपए प्रति किलो भी रहता है, तो 3 से 5 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर तक की कमाई संभव है।

क्यों अपनाएं यह तकनीक?

कुफरी लवकर आलू की खेती में अगर वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं, तो यह किसानों के लिए सुनहरा मौका साबित हो सकता है। कम समय में अधिक उपज, बेहतर बाजार मूल्य और कम लागत में अच्छा मुनाफा – यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के किसान इसकी खेती को तरजीह दे रहे हैं। अगर आप भी आलू की खेती करते हैं, तो इस किस्म को जरूर आजमाएं और अपनी आमदनी बढ़ाएं।

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  • Shashikant

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