देश में ₹10 हजार करोड़ से ज्यादा का हो गया इस सुपर फूड का बाजार, अब धान के खेतों में भी शुरू हुई इसकी खेती

क्या आपने कभी सोचा कि एक छोटा-सा बीज आपके खेत को सोना उगलने वाली जमीन बना सकता है? भारत में सुपर फूड मखाना का बाजार करीब 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का हो गया है जिसकी वजह से कोसी इलाके के किसान आजकल मखाना की खेती करके यही कमाल कर रहे हैं। पहले यहाँ के खेतों में सिर्फ धान और गेहूँ लहलहाते थे, लेकिन अब मखाना की फसल ने खेती का नक्शा ही बदल दिया।

अमेरिका, यूरोप, और पश्चिम एशिया में मखाने की बढ़ती माँग ने इसकी कीमत को तीन गुना कर दिया है। सहरसा में इस साल 5 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर मखाना बोया गया है, और हर साल इसका रकबा 5-10 फीसदी बढ़ रहा है। आइए, जानते हैं कि मखाना की खेती कैसे कोसी के किसानों की तकदीर बदल रही है।

सबौर वन बीज से दोगुना मुनाफा

मखाना की खेती में सबौर वन बीज ने गजब ढा दिया है। पुराने तरीकों से एक हेक्टेयर में किसान 18-20 क्विंटल मखाना उगा पाते थे, लेकिन इस नए बीज से 30-35 क्विंटल तक पैदावार हो रही है। यानी उत्पादन लगभग दोगुना! ये बीज न सिर्फ ज्यादा फसल देता है, बल्कि इसकी क्वालिटी भी इतनी अच्छी है कि बाजार में ऊँचे दाम मिलते हैं। कोसी के किसान बताते हैं कि इस बीज को लगाने में ज्यादा खर्चा नहीं आता, और मेहनत भी वही है। बस खेत में पानी का अच्छा इंतजाम और थोड़ी देखभाल चाहिए। सहरसा के उद्यान विभाग के मुताबिक, इस बीज ने किसानों की कमाई को नई उड़ान दी है।

ये भी पढ़ें- यूपी में गंगा किनारे शुरू होगी प्राकृतिक खेती, कृषि सखियां देंगी प्रशिक्षण, जानिए किसानों को कैसे मिलेगा लाभ

कोसी में क्यों बढ़ रही मखाना की खेती?

कोसी और मिथिलांचल का मौसम और मिट्टी मखाना की खेती के लिए जैसे बने ही हैं। यहाँ के तालाब, पोखर, और पानी से भरे खेत मखाने की बेलों को खूब पसंद आते हैं। पहले किसान गरमा धान या रबी-खरीफ में गेहूँ-धान पर निर्भर थे, लेकिन अब मखाना उनकी पहली पसंद बन रहा है। वजह साफ है—मखाना की कीमत और माँग दोनों आसमान छू रही हैं। एक हेक्टेयर में मखाना की खेती से 2-3 लाख रुपये तक का मुनाफा हो सकता है, जो धान से कहीं ज्यादा है। ऊपर से, मखाना की फसल बाढ़ वाले इलाकों में भी आसानी से उग जाती है, जो कोसी के लिए वरदान है।

मखाना बोर्ड से नई उम्मीद

मखाना की खेती को और चमकाने के लिए सरकार ने 100 करोड़ रुपये की लागत से मखाना बोर्ड बनाने का ऐलान किया है। ये बोर्ड किसानों को नई तकनीकों का प्रशिक्षण देगा, जैसे सबौर वन बीज का सही इस्तेमाल और जैविक खेती के तरीके। साथ ही, ये किसानों को निर्यात के लिए तैयार करेगा, ताकि वो अपनी फसल सीधे विदेशी बाजारों में बेच सकें। मखाना बोर्ड फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स के लिए निवेश लाने और निर्यात के लिए बुनियादी ढाँचा तैयार करने में भी मदद करेगा। पटना और दरभंगा हवाई अड्डों पर कार्गो होल्ड एरिया बनाने की योजना है, जिससे मखाना आसानी से अमेरिका और यूरोप पहुँच सके।

खेती का आसान तरीका

मखाना की खेती शुरू करना कोई बड़ी बात नहीं। इसे तालाबों या 4-6 फीट पानी वाले खेतों में उगाया जाता है। फरवरी-मार्च में सबौर वन बीज की बुवाई करें। खेत में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें, और पानी का अच्छा इंतजाम रखें। मखाना की बेलों को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं, बस कीटों से बचाने के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशक छिड़कें। फसल 60-70 दिन में तैयार हो जाती है। सहरसा के किसान बताते हैं कि मखाना की कटाई के बाद उसे सुखाकर प्रोसेस करना आसान है, और बाजार में अच्छा दाम मिलता है।

ये भी पढ़ें- अब होगी बिना छिलके वाली जौ की खेती, हुआ 5 किस्मों पर सफल परीक्षण

Author

  • Shashikant

    नमस्ते, मैं शशिकांत। मैं 2 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे खेती से सम्बंधित सभी विषय में विशेषज्ञता प्राप्‍त है। मैं आपको खेती-किसानी से जुड़ी एकदम सटीक ताजा खबरें बताऊंगा। मेरा उद्देश्य यही है कि मैं आपको 'काम की खबर' दे सकूं। जिससे आप समय के साथ अपडेट रहे, और अपने जीवन में बेहतर कर सके। ताजा खबरों के लिए आप Krishitak.com के साथ जुड़े रहिए।

    View all posts

Leave a Comment