पत्तागोभी की खेती किसानों के लिए हमेशा से फायदे का सौदा रही है, और अब नई तकनीकों और उन्नत किस्मों के साथ यह और भी लाभदायक हो सकती है। हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने पत्तागोभी की ग्रीन चैलेंजर नामक संकर किस्म को अपनाने की सलाह दी है। यह किस्म न सिर्फ ज्यादा पैदावार देती है, बल्कि गर्मी और रोगों के प्रति भी मजबूत है। अगर सही तरीके से खेती की जाए, तो प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन तक उपज मिल सकती है, जो पुराने तौर-तरीकों से कहीं ज्यादा है। आइए, गाँव के किसानों के लिए इस खेती को आसान और फायदेमंद बनाने के वैज्ञानिक तरीकों को समझते हैं।
ग्रीन चैलेंजर की खासियत
पत्तागोभी की ग्रीन चैलेंजर किस्म अपनी खास बनावट और मजबूती के लिए जानी जाती है। इसकी बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 300 से 500 ग्राम बीज काफी हैं। लेकिन बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम दवा से उपचारित करना जरूरी है। इसके लिए 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाएँ। यह उपचार बीजों को फफूंद जनित रोगों से बचाता है और पौधों की शुरुआती बढ़त को मजबूत करता है। खेत में पौधों को लगाने के लिए 90X60 सेंटीमीटर की दूरी (कतार से कतार और पौधे से पौधे) रखें। यह त्रिभुजाकार विन्यास पौधों को पर्याप्त जगह देता है, जिससे उनकी जड़ें और पत्तियाँ अच्छे से बढ़ती हैं। इससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में इजाफा होता है।
उर्वरक और मिट्टी की तैयारी
पत्तागोभी की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी को पोषण से भरपूर करना जरूरी है। खेत तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर 20 टन गोबर की खाद डालें। इसके साथ 100 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 60 किलो पोटाश का इस्तेमाल करें। यह उर्वरक मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं और पौधों को शुरुआती बढ़त देते हैं। बुवाई के बाद भी पौधों को पोषण की जरूरत पड़ती है। इसके लिए हर दो दिन में फर्टिगेशन के जरिए उर्वरक देना चाहिए। एनपीके उर्वरक (19:19:19, 12:61:00, 13:00:45) को 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। यह तरीका पौधों को लगातार पोषण देता है, जिससे पत्तागोभी के गोभी बड़े, हरे और स्वस्थ रहते हैं।
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सही समय पर सिंचाई
पत्तागोभी की फसल के लिए पानी का सही प्रबंधन बहुत जरूरी है। गर्म मौसम में पौधों को नमी की जरूरत ज्यादा होती है। वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल करें। इस विधि से पानी सीधे जड़ों तक पहुँचता है और बर्बादी कम होती है। हर दो दिन में एक बार ड्रिप के जरिए पानी दें। यह तरीका न सिर्फ पानी बचाता है, बल्कि पौधों को एकसमान नमी भी देता है। इससे गोभी का आकार बढ़ता है और उसका वजन भी अच्छा रहता है। अगर ड्रिप सिस्टम उपलब्ध न हो, तो सुबह या शाम के समय हल्की सिंचाई करें, ताकि धूप में पानी सूखे नहीं।
खरपतवार और कीट प्रबंधन
पत्तागोभी की फसल को खरपतवार और कीटों से बचाना जरूरी है। खरपतवार पौधों के पोषण को चुरा लेते हैं, इसलिए समय पर उनकी सफाई करें। बुवाई के 20 दिन बाद पहली हेंडवीडिंग और 40 दिन बाद दूसरी हेंडवीडिंग करें। इससे खेत साफ रहेगा और पौधों को पूरा पोषण मिलेगा। कीटों की बात करें, तो पत्तागोभी में आरा मक्खी और डायमंड बैक मॉथ जैसे कीट नुकसान पहुंचा सकते हैं। आरा मक्खी के लिए कराटे हाइड्रोक्लोराइड को 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। डायमंड बैक मॉथ के लिए एमामेक्टिन बेंजोएट को 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। ये दवाएँ कीटों को प्रभावी ढंग से रोकती हैं और फसल को स्वस्थ रखती हैं।
रोगों से बचाव
पत्तागोभी में फफूंद जनित रोग भी बड़ी समस्या बन सकते हैं। ये रोग पत्तियों को खराब करते हैं और गोभी की गुणवत्ता कम करते हैं। इससे बचने के लिए क्लोरोथैलेनिल या काक्सानिल दवा का इस्तेमाल करें। इन दवाओं को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह छिड़काव हर 10-15 दिन में करें, खासकर अगर मौसम नम हो। यह उपाय पत्तियों को हरा-भरा और स्वस्थ रखता है। छिड़काव हमेशा सुबह या शाम को करें, ताकि दवा पौधों पर अच्छे से काम कर सके। अगर खेत में रोग के लक्षण दिखें, तो तुरंत कृषि वैज्ञानिक से सलाह लें।
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