किसान भाईयों, मेहंदी, जिसे हिना के नाम से भी जाना जाता है, एक सुगंधित औषधीय फसल है, जो शादी-ब्याह, त्योहारों, और कॉस्मेटिक उद्योग में अपनी विशेष जगह रखती है। राजस्थान के पाली जिले की सोजत मेहंदी विश्व भर में प्रसिद्ध है, और मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों में भी इसकी खेती बढ़ रही है। यह फसल कम पानी और रखरखाव में उगने वाली है, जो शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के किसानों के लिए सुनहरा अवसर है। वर्तमान में, मेहंदी की माँग भारत और विदेशों में तेजी से बढ़ रही है। इस लेख में हम मेहंदी की खेती की पूरी प्रक्रिया, लागत, मुनाफा, राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) की सब्सिडी, प्रशिक्षण, और निर्यात की संभावनाओं को विस्तार से जानेंगे।
मेहंदी की खेती की शुरुआत
मेहंदी एक बहुवर्षीय झाड़ीदार पौधा है। इसकी पत्तियों में लासोन नामक रंजक यौगिक होता है, जो रंग प्रदान करता है। यह फसल शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में अच्छी तरह पनपती है, जिसके कारण राजस्थान का पाली जिला इसका केंद्र बना हुआ है। वर्तमान में, पाली की सोजत तहसील में लगभग 40,000 हेक्टेयर भूमि पर मेहंदी की खेती हो रही है, जो भारत के कुल उत्पादन का 90% हिस्सा है। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, और गुजरात के शुष्क क्षेत्रों में भी किसान इस फसल को अपनाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
मेहंदी की खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद 30-40 वर्षों तक उपज मिलती है। यह फसल कम पानी, कम खाद, और कम रखरखाव में उगती है, जिससे लागत बहुत कम रहती है। इसके अलावा, मेहंदी की पत्तियाँ कॉस्मेटिक, आयुर्वेदिक, और सौंदर्य उत्पादों में उपयोग होती हैं, जिससे इसकी माँग हमेशा बनी रहती है।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का रखें ध्यान
मेहंदी की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु आदर्श है। यह 25 से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह बढ़ती है, लेकिन अत्यधिक ठंड या पाला इसके लिए हानिकारक है। 400-500 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, और गुजरात के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र इसके लिए सबसे अनुकूल हैं।
मिट्टी की बात करें, तो मेहंदी रेतीली दोमट, हल्की काली, और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। मिट्टी का पीएच मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए। भारी और जलभराव वाली मिट्टी में इसकी जड़ें सड़ सकती हैं, इसलिए जल निकासी का विशेष ध्यान रखें।
मेहंदी की प्रमुख किस्में
वर्तमान में, मेहंदी की कोई उन्नत किस्म आधिकारिक तौर पर विकसित नहीं हुई है, लेकिन स्थानीय स्तर पर कई किस्में लोकप्रिय हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
सोजत मेहंदी: राजस्थान के पाली जिले की यह किस्म अपनी गहरी रंगत और उच्च गुणवत्ता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसका निर्यात यूरोप, मध्य पूर्व, और अमेरिका में होता है।
राजस्थानी मेहंदी: इसकी पत्तियाँ गहरे रंग की होती हैं और कॉस्मेटिक उद्योग में माँग अधिक है।
अहमदाबाद किस्म: गुजरात में लोकप्रिय, यह अधिक उत्पादन देती है और खेती में आसान है।
किसानों को स्वस्थ, चौड़ी, और घनी पत्तियों वाले पौधों के बीज या पौध चुनने चाहिए, ताकि उपज और गुणवत्ता दोनों बेहतर हो।
खेती की प्रक्रिया
मेहंदी की खेती शुरू करने के लिए खेत की तैयारी, रोपण, और देखभाल की प्रक्रिया सरल है। इसे दो तरीकों से शुरू किया जा सकता है: बीज बुवाई या नर्सरी से पौध रोपण।
खेत की तैयारी: खेत को 2-3 बार जुताई करके भुरभुरा बनाएँ। जंगली झाड़ियों और खरपतवार को हटाएँ। प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। खेत को समतल करके जल निकासी की व्यवस्था करें।
रोपण का समय और विधि: मेहंदी की रोपाई जुलाई-अगस्त (मानसून) या मार्च-अप्रैल में की जाती है। बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोकर अंकुरित करें और 30-50 सेमी दूरी पर पंक्तियों में बोएँ। नर्सरी से पौध लेने पर 60×60 सेमी दूरी पर रोपाई करें। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि जड़ें मिट्टी में जम जाएँ।
सिंचाई और देखभाल: मेहंदी को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती। शुरुआती 2-3 महीनों में 15-20 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें। मानसून में प्राकृतिक जल पर्याप्त होता है। अधिक पानी से पत्तियों का रंग हल्का पड़ सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। एट्राजीन (400 ग्राम प्रति एकड़) का छिड़काव भी खरपतवार कम करने में प्रभावी है।
कटाई और प्रसंस्करण: पहली कटाई रोपाई के 10-12 महीने बाद की जाती है। इसके बाद हर साल मार्च-अप्रैल और अक्टूबर-नवंबर में कटाई होती है। पौधों को जमीन से 6-8 सेमी ऊपर तेज हंसिए से काटें। कटाई के बाद पत्तियों को छाँव में 3-4 दिन सुखाएँ और डंठल से अलग करें। सूखी पत्तियों को बोरियों में भरकर बिक्री के लिए तैयार करें।
लागत और मुनाफा कहाँ तक
मेहंदी की खेती (Mehandi Ki Kheti) में लागत बहुत कम आती है। प्रति एकड़ खेती की अनुमानित लागत 10,000-15,000 रुपये है, जिसमें बीज/पौध, गोबर खाद, मजदूरी, और सिंचाई शामिल हैं। पहले वर्ष उपज कम होती है (5-10% क्षमता), लेकिन तीसरे-चौथे वर्ष से पूरी क्षमता मिलती है। प्रति एकड़ 10-15 क्विंटल सूखी पत्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
सूखी पत्तियों की कीमत गुणवत्ता के आधार पर 50-150 रुपये प्रति किलो होती है। इस तरह, प्रति एकड़ आय 50,000 से 1,50,000 रुपये तक हो सकती है। पहले वर्ष मुनाफा 30,000-50,000 रुपये और तीसरे वर्ष से 1,00,000 रुपये तक हो सकता है। जैविक मेहंदी की पत्तियाँ 200 रुपये प्रति किलो तक बिक सकती हैं, जिससे मुनाफा और बढ़ता है।
NMPB की सब्सिडी और प्रशिक्षण
राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB), आयुष मंत्रालय के तहत, मेहंदी जैसे औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय आयुष मिशन के अंतर्गत किसानों को 30-50% सब्सिडी मिलती है, जो बीज, पौध, और खेती उपकरणों पर लागू होती है। उदाहरण के लिए, प्रति हेक्टेयर 10,000-15,000 रुपये की सब्सिडी मिल सकती है। इसके लिए किसानों को स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या राज्य औषधीय पादप बोर्ड से संपर्क करना होगा।
NMPB और KVK मेहंदी की खेती पर मुफ्त प्रशिक्षण भी आयोजित करते हैं। ये प्रशिक्षण बीज चयन, जैविक खेती, कटाई, और प्रसंस्करण पर केंद्रित होते हैं। राजस्थान के पाली, मध्यप्रदेश के इंदौर, और उत्तर प्रदेश के लखनऊ में KVK नियमित रूप से ऐसे कार्यक्रम चलाते हैं। गुजरात के किसान आनंद कृषि विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण ले सकते हैं।
निर्यात की संभावनाएँ
मेहंदी की पत्तियाँ और पाउडर का निर्यात अल्जीरिया, फ्रांस, सऊदी अरब, सिंगापुर, और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में होता है। सोजत की मेहंदी अपनी रंगत के लिए विश्व प्रसिद्ध है और प्रति वर्ष 8,000-10,000 टन निर्यात की जाती है। जैविक मेहंदी की माँग यूरोप और अमेरिका में तेजी से बढ़ रही है, जहाँ इसे कॉस्मेटिक और आयुर्वेदिक उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
मेहंदी की खेती में कुछ चुनौतियाँ हैं। पहली चुनौती है उच्च गुणवत्ता वाले बीज/पौधों की उपलब्धता। इसे KVK, NMPB, या विश्वसनीय नर्सरी से हल करें। दूसरी चुनौती है बाजार तक पहुँच। इसके लिए सहकारी समितियों, e-NAM, या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़ें। तीसरी चुनौती है अत्यधिक बारिश, जो पत्तियों को नुकसान पहुँचाती है। इसके लिए जल निकासी और समय पर कटाई सुनिश्चित करें।
मेहंदी की खेती कम लागत में लाखों का मुनाफा देने वाली फसल है, जो शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के किसानों के लिए वरदान है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, और गुजरात के किसान इसे अपनाकर न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि निर्यात के जरिए वैश्विक बाजार में भी पहचान बना सकते हैं। NMPB की सब्सिडी और प्रशिक्षण इस खेती को और आसान बनाते हैं। शुरुआत छोटे स्तर पर करें, जैविक खेती अपनाएँ, और स्थानीय KVK या NMPB से संपर्क करें। मेहंदी की खेती आपके खेत को हरा और जेब को भरा रखेगी।
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