जानिये क्या है ट्रैप क्रॉप, बिना कीटनाशक के फसलों की सुरक्षा, ये है असली रहस्य!

Jaal Fasal Technic: किसान भाइयों, वर्तमान में भारतीय किसान फसलों को कीटों, खरपतवारों, और जंगली जानवरों से बचाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करते हैं। रासायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग मृदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है और पर्यावरण को प्रदूषित करता है। जाल फसल तकनीक (ट्रैप क्रॉप) एक पर्यावरण-अनुकूल और लागत-प्रभावी समाधान है, जो कीटों को मुख्य फसल से दूर आकर्षित कर फसल को सुरक्षित रखता है। यह तकनीक जैविक खेती को बढ़ावा देती है और रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करती है। यह लेख जाल फसल तकनीक के सिद्धांत, प्रक्रिया, भारतीय फसलों में उपयोग, लाभ, लागत, और चुनौतियों पर विस्तार से जानकारी देगा।

जाल फसल तकनीक का महत्व

जाल फसल तकनीक एक जैविक कीट नियंत्रण विधि है, जिसमें मुख्य फसल के आसपास या बीच में ऐसी फसलें उगाई जाती हैं, जो कीटों को आकर्षित करती हैं। ये जाल फसलें कीटों को मुख्य फसल से दूर रखती हैं, जिससे मुख्य फसल सुरक्षित रहती है। यह तकनीक रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को 40-50% तक कम कर सकती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरणीय नुकसान कम होता है। भारतीय कृषि में, जहाँ धान, गेहूँ, कपास, और सब्जियाँ प्रमुख फसलें हैं, यह तकनीक विशेष रूप से उपयोगी है।

जाल फसलें न केवल कीटों को नियंत्रित करती हैं, बल्कि मृदा स्वास्थ्य को भी सुधारती हैं। कुछ जाल फसलें, जैसे मूंग और लोबिया, नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करती हैं। इसके अलावा, यह तकनीक खरपतवारों को दबाने और मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करती है। जैविक खेती की बढ़ती माँग के कारण, जाल फसल तकनीक किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन रही है।

जाल फसल तकनीक की प्रक्रिया और उपयोग

जाल फसल तकनीक में निम्नलिखित चरण शामिल हैं। पहले, खेत की मिट्टी की जाँच करें और उचित खाद डालें। जाल फसल की बुवाई मुख्य फसल से 10-15 दिन पहले करें, ताकि यह कीटों को पहले आकर्षित करे। जाल फसल की पंक्तियाँ मुख्य फसल से 2-3 मीटर की दूरी पर हों। कीटों के जाल फसल पर जमा होने पर, जैविक कीटनाशक, जैसे नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी), का छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो, तो जाल फसल को उखाड़कर नष्ट करें, ताकि कीट मुख्य फसल तक न पहुँचें।

भारतीय फसलों में जाल फसल के कुछ उदाहरण हैं। कपास की फसल को बोलवर्म से बचाने के लिए भिंडी या मक्का को जाल फसल के रूप में उगाया जाता है। धान में तना छेदक को नियंत्रित करने के लिए मरुआ (रागी) या बाजरा उपयुक्त है। सब्जियों, जैसे गोभी और फूलगोभी, में डायमंडबैक मोथ (प्लूटेला जाइलोस्टेला) को सरसों या राई के पौधों से आकर्षित किया जाता है। ये जाल फसलें कीटों को मुख्य फसल से दूर रखती हैं और उपज को 15-20% तक बढ़ा सकती हैं।

प्रमुख फसलों में जाल फसल का चयन

विभिन्न फसलों के लिए जाल फसल का चयन कीटों की प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। कपास में भिंडी कीटों को आकर्षित करती है, क्योंकि इसके फूल और फल बोलवर्म के लिए आकर्षक हैं। धान में मरुआ या बाजरा तना छेदक को आकर्षित करता है, क्योंकि इनके तने नरम और रसदार होते हैं। गोभी और फूलगोभी में सरसों डायमंडबैक मोथ को आकर्षित करती है, क्योंकि इसके पत्ते कीटों के लिए पसंदीदा भोजन हैं।

सब्जी फसलों, जैसे बैंगन और टमाटर, में मैरीगोल्ड (गेंदा) को जाल फसल के रूप में उगाया जाता है। गेंदा के फूल नेमाटोड और अन्य मिट्टी के कीटों को आकर्षित करते हैं, जिससे मुख्य फसल सुरक्षित रहती है। इन जाल फसलों को चुनते समय, स्थानीय जलवायु और मिट्टी की स्थिति को ध्यान में रखें। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में सरसों और बाजरा आसानी से उगाए जा सकते हैं, जबकि दक्षिण भारत में भिंडी और मरुआ अधिक उपयुक्त हैं।

लाभ और विशेषताएँ

जाल फसल तकनीक (Jaal Fasal Technic) के कई लाभ हैं। यह रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करती है, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की रक्षा होती है। यह तकनीक मृदा स्वास्थ्य को सुधारती है, क्योंकि जाल फसलें मिट्टी के कटाव को रोकती हैं और जैविक पदार्थ प्रदान करती हैं। कुछ जाल फसलें, जैसे मूंग और लोबिया, नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती हैं।

इसके अलावा, यह तकनीक लागत-प्रभावी है। जाल फसल की बुवाई और रखरखाव की लागत कम होती है, और यह मुख्य फसल की उपज को बढ़ाती है। उदाहरण के लिए, कपास में भिंडी की जाल फसल उपज को 15-20% तक बढ़ा सकती है। यह तकनीक जैविक खेती को बढ़ावा देती है, जिससे जैविक उत्पादों की माँग पूरी होती है। स्थानीय मंडियों में जैविक फसलों की कीमत 20-30% अधिक होती है, जिससे किसानों का मुनाफा बढ़ता है।

लागत और मुनाफे का हिसाब किताब

जाल फसल तकनीक को लागू करने की लागत में बीज, खाद, मजदूरी, और जैविक कीटनाशक शामिल हैं। प्रति एकड़ जाल फसल की बुवाई के लिए 2000-3000 रुपये की लागत आती है। इसमें भिंडी, सरसों, या मरुआ जैसे बीजों की लागत 500-1000 रुपये, गोबर खाद और वर्मी कम्पोस्ट की लागत 1000-1500 रुपये, और मजदूरी की लागत 500-1000 रुपये शामिल है। जैविक कीटनाशक, जैसे नीम तेल, की लागत 500 रुपये प्रति एकड़ है।

मुनाफे की बात करें, तो जाल फसल मुख्य फसल की उपज को 15-20% बढ़ाती है। उदाहरण के लिए, कपास की औसत उपज 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ है, जो जाल फसल के उपयोग से 10-12 क्विंटल हो सकती है। कपास का बाजार मूल्य 6000-7000 रुपये प्रति क्विंटल है, जिससे अतिरिक्त 12,000-14,000 रुपये का मुनाफा होता है। यदि जाल फसल, जैसे भिंडी, की बिक्री भी हो, तो प्रति एकड़ 5000-7000 रुपये की अतिरिक्त आय हो सकती है। कुल मिलाकर, प्रति एकड़ 15,000-20,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा संभव है।

जंगली जानवरों से सुरक्षा में भूमिका

जाल फसल तकनीक न केवल कीटों, बल्कि जंगली जानवरों से भी फसलों की रक्षा कर सकती है। खेत के किनारे काँटेदार पौधे, जैसे करौंदा, नींबू, या ड्रैगन फ्रूट, लगाने से नीलगाय और अन्य जंगली जानवर खेत में प्रवेश नहीं करते। ये पौधे न केवल सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि अतिरिक्त आय भी देते हैं। उदाहरण के लिए, ड्रैगन फ्रूट की बाजार माँग तेजी से बढ़ रही है, और नींबू का उपयोग हर भारतीय रसोई में होता है।

जाल फसल तकनीक भारतीय किसानों के लिए एक क्रांतिकारी समाधान है, जो फसलों को कीटों और जंगली जानवरों से सुरक्षित रखता है। यह तकनीक रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करती है, मृदा स्वास्थ्य को सुधारती है, और किसानों की आय बढ़ाती है। सही जाल फसल चयन, समय पर बुवाई, और जैविक कीटनाशकों के उपयोग से उपज को 15-20% तक बढ़ाया जा सकता है। KVK, ICAR, और सरकारी योजनाओं का समर्थन लेकर किसान इस तकनीक को आसानी से अपना सकते हैं। यह तकनीक न केवल आर्थिक लाभ देती है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और जैविक खेती को भी बढ़ावा देती है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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