Tur Dal Price: 2024-25 में तूर दाल की रिकॉर्ड खरीद, फिर भी किसान बेचने को मजबूर MSP से 12% कम दाम पर, जानिए वजह

Tur Dal Price: 2024-25 फसली मौसम में मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत तुअर दाल की 0.59 मिलियन टन रिकॉर्ड खरीद हुई, जो 2017-18 के बाद सबसे ज्यादा है। इसके बावजूद, मंडियों में तुअर की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 7550 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे 6600 रुपये पर टिकी हैं। ट्रेडर्स के मुताबिक, म्यांमार और अफ्रीकी देशों से सस्ता आयात और बंपर घरेलू उत्पादन ने कीमतों पर दबाव डाला है।

मंडी में कीमतें MSP से नीचे

मंडियों में तुअर का भाव 6600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है, जबकि MSP 7550 रुपये है। म्यांमार, मोजाम्बिक, मलावी, और तंजानिया से आयातित तुअर 5600-6220 रुपये प्रति क्विंटल में मिल रही है, जो घरेलू दामों से सस्ती है। कृषि मंत्रालय के अनुसार, 2024-25 में तुअर उत्पादन 3.56 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल के 3.41 मिलियन टन से ज्यादा है। ट्रेडर्स का दावा है कि उत्पादन 10-15% बढ़ सकता है। 1.1 मिलियन टन आयात ने भी कीमतों को नीचे खींचा।

रिकॉर्ड PSS खरीद, फिर भी दबाव

नाफेड और NCCF ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, और गुजरात से 0.59 मिलियन टन तुअर खरीदी। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 2024-25 में तुअर, उड़द, और मसूर की 100% राज्य उत्पादन की खरीद PSS के तहत होगी, ताकि आयात कम हो। लेकिन बढ़ते उत्पादन और आयात ने मंडी कीमतों को गिरा दिया। कंज्यूमर अफेयर्स विभाग के मुताबिक, खुदरा में तुअर की कीमत फरवरी 2025 में 160 रुपये प्रति किलो से गिरकर अप्रैल में 120 रुपये हो गई, जिससे महंगाई दर -9.84% पर पहुँची।

पिछले साल ऊँचे दाम

2022-23 और 2023-24 में कम उत्पादन के कारण तुअर का मंडी भाव 9000-10,000 रुपये प्रति क्विंटल था, जो MSP से ज्यादा था। उस वक्त PSS खरीद न के बराबर थी, और बफर स्टॉक नहीं बन सका। इस साल बंपर फसल और मार्च 2026 तक बढ़ी आयात नीति ने कीमतों को नीचे ला दिया। सरकार ने पीली मटर दाल का शुल्क-मुक्त आयात भी 31 मई 2025 तक बढ़ाया, ताकि दाल सस्ती रहे।

आयात कम करने की कवायद

कृषि मंत्रालय ने 2027 तक तुअर में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य रखा है। दलहन मिशन और PSS खरीद से किसानों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। ई-समृद्धि पोर्टल पर पंजीकरण कर किसान MSP पर तुअर बेच सकते हैं। लेकिन सस्ता आयात और बढ़ता उत्पादन छोटे किसानों के लिए चुनौती बना हुआ है।

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  • Shashikant

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