उत्तर प्रदेश में बासमती धान की खेती किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है। इसकी अनूठी सुगंध और स्वाद की मांग देश-विदेश में है, जिससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए बासमती धान की उन्नत प्रजातियों पर नई एडवाइजरी जारी की है। इसमें उन्नत प्रजातियाँ, नर्सरी, रोपाई का समय, और खेती के तरीकों की सलाह दी गई है। यह गाइड गाँव के किसानों के लिए खास है, जो बासमती की खेती से अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं। आइए, इस एडवाइजरी को समझें और बासमती की खेती को और फायदेमंद बनाने के तरीके जानें।
उन्नत बासमती प्रजातियाँ
ICAR ने उत्तर प्रदेश के लिए कई उन्नत बासमती प्रजातियों की सलाह दी है, जो उच्च उपज और बेहतर गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं। इनमें आजाद बासमती, पूसा बासमती 1, पूसा बासमती 6, पूसा बासमती 4, पूसा सुगंध 2, पूसा सुगंध 3, पूसा सुगंध 5, वल्लभ बासमती 22, मालवीय सुगंध 105, और पूसा बासमती 1509 शामिल हैं। ये प्रजातियाँ 120-140 दिन में पकती हैं और अच्छी देखभाल के साथ प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल उपज दे सकती हैं। इनकी नर्सरी जून में तैयार करें और रोपाई जुलाई के पहले पखवाड़े में करें। वहीं, CSR 30, बासमती 370, और बासमती 386 देर से पकने वाली प्रजातियाँ हैं। इनकी रोपाई जुलाई के दूसरे पखवाड़े में करें, ताकि फसल को पकने का पूरा समय मिले।
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नर्सरी और रोपाई की तकनीक
बासमती की खेती में नर्सरी का सही प्रबंधन बहुत जरूरी है। ICAR की सलाह है कि नर्सरी जून के पहले हफ्ते में शुरू करें। 25-30 दिन की पौध को रोपाई के लिए तैयार करें। रोपाई के समय एक जगह पर केवल दो पौधे लगाएँ और पौधे से पौधे की दूरी 20×15 सेंटीमीटर रखें। इससे पौधों को हवा, धूप, और पोषण अच्छे से मिलता है। रोपाई से पहले खेत में 45-55 दिन का ढैंचा हरी खाद के रूप में मिलाएँ। ढैंचा मिट्टी में नाइट्रोजन और जैविक पदार्थ बढ़ाता है, जिससे उपज 15-20% तक बढ़ सकती है। खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें, क्योंकि बासमती को जलभराव पसंद नहीं।
मिट्टी और खाद प्रबंधन
बासमती की खेती के लिए मिट्टी की उर्वरता बहुत मायने रखती है। रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह जोत लें और 5-7 टन गोबर खाद या केंचुआ खाद डालें। यह मिट्टी को पोषण देता है और रासायनिक खाद की जरूरत कम करता है। ICAR की सलाह है कि मिट्टी की जाँच करवाएँ, ताकि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, या पोटाश की कमी का पता चल सके। अगर कमी हो, तो जैविक खाद के साथ यूरिया या DAP का सीमित उपयोग करें। ढैंचा जैसी हरी खाद मिट्टी की सेहत को लंबे समय तक बनाए रखती है। खेत में पानी का स्तर संतुलित रखें, ताकि फसल स्वस्थ रहे।
बीज कैसे प्राप्त करें
उन्नत बासमती प्रजातियों के बीज प्राप्त करने के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), या स्थानीय कृषि कार्यालय से संपर्क करें। उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम और ICAR के क्षेत्रीय केंद्र (जैसे IARI, नई दिल्ली) उन्नत बीज उपलब्ध कराते हैं। प्रमाणित बीज खरीदें, क्योंकि ये रोगमुक्त और उच्च उपज देने वाले होते हैं। बीज की कीमत प्रजाति के आधार पर 50-100 रुपये प्रति किलोग्राम हो सकती है। प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम बीज पर्याप्त है।
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कितना उत्पादन और मुनाफा होगा
उत्पादन की बात करें, तो पूसा बासमती 1509 और पूसा सुगंध 5 जैसी प्रजातियाँ प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल उपज दे सकती हैं। CSR 30 और बासमती 370 35-45 क्विंटल तक उपज देती हैं। बाजार में बासमती का दाम 3,000-5,000 रुपये प्रति क्विंटल हो सकता है। अगर प्रति हेक्टेयर 45 क्विंटल उपज मिले और औसत दाम 4,000 रुपये प्रति क्विंटल हो, तो कुल आय 1.8 लाख रुपये हो सकती है। खेती की लागत (लगभग 50,000-60,000 रुपये प्रति हेक्टेयर, जिसमें बीज, खाद, और मजदूरी शामिल है) घटाने के बाद 1.2-1.3 लाख रुपये का मुनाफा हो सकता है। जैविक बासमती की खेती करने पर मुनाफा और बढ़ सकता है, क्योंकि इसका दाम 20-30% ज्यादा मिलता है।
ICAR की नई एडवाइजरी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए बासमती की खेती को और मुनाफेदार बनाने का रास्ता दिखाती है। उन्नत प्रजातियाँ, जैसे पूसा बासमती 1509 और CSR 30, और सही रोपाई तकनीक से आप अपनी उपज और आय बढ़ा सकते हैं। देसी टिप्स और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएँ। अपने नजदीकी कृषि कार्यालय से संपर्क करें और बासमती की खेती से अपने खेत को समृद्ध बनाएँ। अपनी खेती की कहानी हमारे साथ साझा करें!
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