Byadagi Chilli: कर्नाटक के किसानों का ‘रेड गोल्ड’, कम लागत में ज़्यादा मुनाफा!

Byadagi Chilli: कर्नाटक की ब्याडगी मिर्च इन दिनों महाराष्ट्र की मिर्च मंडी में छाई हुई है। कर्नाटक के किसान इस मिर्च को एक खास और बहुत कीमती मिर्च करार देते हैं। मुख्य तौर पर हावेरी जिले के ब्याडगी शहर के आसपास उगाई जाने वाली इस मिर्च का नाम ही उसके महत्व को बयान करता है। अपने चमकीले गहरे लाल रंग और हल्के तीखेपन के लिए मशहूर, ब्याडगी मिर्च न सिर्फ कुकिंग में, बल्कि औद्योगिक प्रयोगों में भी एक खास स्थान रखती है। महाराष्ट्र के किसान और व्यापारी इस मिर्च की गुणवत्ता और मांग को देखकर इसे अपनाने लगे हैं, और यह अब एक लोकप्रिय विकल्प बन गई है।

जीआई टैग की पहचान

ब्याडगी मिर्च को साल 2011 में जीआई टैग मिला, जो इसकी क्षेत्रीय और आर्थिक महत्व को दर्शाता है। यह टैग सुनिश्चित करता है कि इस मिर्च की खेती और गुणवत्ता ब्याडगी क्षेत्र तक ही सीमित रहे, ताकि उसकी विशिष्टता बनी रहे। फूड प्रोसेसिंग और कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर इस मिर्च का प्रयोग होता है, जिससे स्थानीय कृषि और व्यापार को मजबूती मिलती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इस मिर्च का बड़ा योगदान है, क्योंकि इससे किसानों को अच्छी आमदनी होती है और रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।

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अमेरिका तक जाती है यह किस्‍म

ब्याडगी मिर्च का निर्यात भी बड़ी मात्रा में होता है, और यह अमेरिका, यूरोप, और जापान जैसे देशों तक पहुँचती है। इसके खूबसूरत लाल रंग और सुगंध के चलते इसे इन देशों में काफी पसंद किया जाता है। फूड इंडस्ट्री में इसके रंग और फ्लेवर की मांग बढ़ रही है, जबकि कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री में इसके ओलियोरेसिन ऑयल का इस्तेमाल लिपस्टिक और नेल पॉलिश में होता है। इससे किसानों को न सिर्फ स्थानीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फायदा मिलता है।

दो अलग-अलग प्रकार

ब्याडगी मिर्च दो अलग-अलग प्रकारों में आती है, जो अपनी खासियतों के लिए जानी जाती हैं।

  • ब्याडगी कड्डी: यह पतली, लंबी, और नुकीली होती है, जिसमें कम बीज होते हैं। किसान इसे ज्यादा उपज की वजह से पसंद करते हैं। यह मिर्च मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर खेती के लिए उपयुक्त है।

  • ब्याडगी डब्बी: यह छोटी, मोटी, और रंग-स्वाद में तेज होती है। इसे मसाला मिश्रण और ओलियोरेसिन एक्सट्रैक्शन में बड़े स्तर पर प्रयोग किया जाता है। इसकी गुणवत्ता और फ्लेवर इसे खास बनाते हैं।

इन दोनों प्रकारों की खेती किसानों की जरूरत और मांग के हिसाब से की जाती है, और दोनों ही महाराष्ट्र की मंडियों में अपनी जगह बना चुकी हैं।

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उपज और मुनाफा

ब्याडगी मिर्च की उपज दयावानूर जैसी स्थानीय किस्मों की तुलना में ज्यादा होती है। जहां दयावानूर से किसानों को 1227 किग्रा/हेक्टेयर उपज हासिल होती है, वहीं ब्याडगी से 1348 किग्रा/हेक्टेयर उपज मिलती है। इसके अलावा, ब्याडगी मिर्च के पौधे लंबे होते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों बढ़ती है। किसानों को इस मिर्च की उपज का भुगतान तुरंत हो जाता है, जो उन्हें आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है। हालांकि, सस्ती और तीखी मिर्च की किस्मों की बढ़ती मांग के कारण ब्याडगी मिर्च की कीमतों में गिरावट आई है, लेकिन प्रोसेसिंग और ट्रेडिंग से उन्हें अच्छा मुनाफा और रोजगार मिलता है।

कुकिंग और औद्योगिक प्रयोग

ब्याडगी मिर्च का प्रयोग कई दक्षिण भारतीय व्यंजनों में जमकर होता है, जैसे कि बीसी बेले बाथ, सांभर, चटनी, और उडुपी स्टाइल की करी। इसके अलावा, यह रेड मीट से बनी डिश में भी प्रयोग की जाती है और उसे लाल रंग देती है। भोजन के अलावा, ब्याडगी मिर्च कॉस्मेटिक इंडस्ट्री के लिए भी काफी जरूरी है। इसके ओलियोरेसिन ऑयल का इस्तेमाल लिपस्टिक और नेल पॉलिश में किया जाता है, जो इसे एक बहुउपयोगी फसल बनाता है। महाराष्ट्र के रसोइयों और उद्यमियों के लिए यह मिर्च एक अनमोल संसाधन बन गई है।

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  • Shashikant

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