खरीफ फसल की बुआई को लेकर किसान खेतों में जुट गए हैं। दलहन की खेती की भी तैयारियाँ चल रही हैं। इस समय मूंग की बुआई के लिए सबसे उत्तम समय जुलाई का पहला पखवाड़ा माना जाता है। अगर किसान इस दौरान उन्नत किस्मों को लगाते हैं, तो उन्हें फायदा हो सकता है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) ने मूंग की तीन नई किस्में, एमएच 1142, एमएच 1762, और एमएच 1772 विकसित की हैं, जो किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इन किस्मों को अपनाकर किसान अपनी उपज और आय दोनों बढ़ा सकते हैं।
मूंग की एमएच 1142: खरीफ के लिए आदर्श
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि खरीफ मौसम में बोई जाने वाली मूंग की एमएच 1142 किस्म को उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों में खेती के लिए अनुमोदित किया गया है। इन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, और असम जैसे राज्य शामिल हैं।
इस किस्म की फलियां काले रंग की होती हैं, और बीज मध्यम आकार के, हरे, और चमकीले होते हैं। इसका पौधा कम फैलावदार, सीधा, और सीमित बढ़वार वाला होता है, जिससे कटाई आसान हो जाती है। यह किस्म 63 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार इसकी औसत पैदावार 12 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है।
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एमएच 1762 और एमएच 1772: रोग प्रतिरोधी और ज्यादा उपज
दलहन अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश यादव ने बताया कि एमएच 1762 और एमएच 1772 किस्में पीला मोजैक और अन्य रोगों की प्रतिरोधी हैं, जो किसानों के लिए एक बड़ा फायदा है। एमएच 1762 किस्म वसंत और ग्रीष्मकाल में उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में बुआई के लिए उपयुक्त है, जबकि एमएच 1772 किस्म खरीफ में उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में काश्त के लिए अनुमोदित की गई है।
एमएच 1762 किस्म लगभग 60 दिनों में तैयार हो जाती है और अन्य प्रचलित किस्मों की तुलना में 10-15 प्रतिशत ज्यादा उपज देती है। इसकी औसत उपज 14.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वहीं, एमएच 1772 किस्म 67 दिनों में तैयार हो जाती है और अन्य किस्मों की तुलना में 15 प्रतिशत ज्यादा उपज देती है, जिसकी औसत उपज 13.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
प्रमाणित बीज ही लें
एचएयू के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने किसानों को आगाह किया है कि वे हमेशा प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें। उन्होंने कहा कि समय की मांग के अनुसार हमें दलहन की खेती की ओर जाना होगा, और मूंग हरियाणा में सबसे बेहतर विकल्प है। विश्वविद्यालय ने हाल ही में निजी कंपनियों के साथ एमओयू किया है, ताकि इन नई किस्मों के बीज किसानों तक आसानी से पहुँच सकें। किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि वे बीज खरीदते समय पक्का बिल लें, ताकि उन्हें गुणवत्तापूर्ण बीज मिल सके और वे अपनी फसल को सही तरीके से उगा सकें।
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क्यों जरूरी है उन्नत किस्में
उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करना किसानों के लिए क्यों जरूरी है, यह समझना महत्वपूर्ण है। पुरानी किस्मों की तुलना में ये नई किस्में रोग प्रतिरोधी हैं, जल्दी पकती हैं, और ज्यादा उपज देती हैं। इससे किसानों को समय, श्रम, और लागत की बचत होती है, और वे अपनी आय बढ़ा सकते हैं। खासतौर पर जुलाई के पहले पखवाड़े में इन किस्मों को लगाने से किसान फायदा उठा सकते हैं, क्योंकि इस समय मूंग की बुआई के लिए मौसम अनुकूल होता है।
दलहन की खेती की ओर बढ़ें
प्रो. कांबोज का कहना है कि समय की मांग के अनुसार हमें दलहन की खेती की ओर बढ़ना होगा। दलहन फसलों में मूंग एक ऐसा विकल्प है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और किसानों को अच्छी आमदनी देता है। हरियाणा में मूंग की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार और विश्वविद्यालय मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि किसान इस दिशा में आगे बढ़ें। नई किस्मों के बीज उपलब्ध कराकर और किसानों को जागरूक करके, उन्हें दलहन की खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
ये नई किस्में किसानों की जिंदगी बदल रही हैं। जो किसान पहले पुरानी किस्मों से सीमित उपज पाते थे, अब वे इन उन्नत किस्मों से ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। रोग प्रतिरोधी किस्में फसलों को बीमारियों से बचाती हैं, और जल्दी पकने वाली किस्में किसानों को समय बचाती हैं। इससे वे अन्य फसलों की बुआई के लिए भी समय निकाल सकते हैं। सरकार और विश्वविद्यालय की पहल से किसानों को नई दिशा मिल रही है, और वे अपनी ज़मीन का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं।
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