Punjab News: मानसून की दस्तक के साथ ही गाँवों में खेतों की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो गई है। पंजाब के संगरूर जिले में किसान भाई धान की रोपाई में जुटे हैं, लेकिन इस बार जिला प्रशासन ने साफ चेतावनी दी है कि दो धान की किस्मों पूसा-44 और पीली पूसा की बुआई बिल्कुल नहीं करनी है। ये दोनों किस्में प्रतिबंधित हैं, और इन्हें बोना सरकार के नियमों की अवहेलना माना जाएगा। इसके बजाय, प्रशासन किसानों को मक्का की खेती की सलाह दे रहा है, जो कम पानी में उगती है और मुनाफा भी देती है।
पूसा-44 और पीली पूसा पर क्यों लगी रोक
संगरूर के डिप्टी कमिश्नर संदीप ऋषि ने किसान भाइयों को साफ शब्दों में बताया है कि पूसा-44 और पीली पूसा धान की किस्मों की बुआई करना गैरकानूनी होगा। ये किस्में लंबे समय तक खेत में रहती हैं, यानी इन्हें पकने में 155 से 160 दिन लगते हैं। इस दौरान ये बहुत ज्यादा पानी खींचती हैं, जिससे भूजल का स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। साथ ही, इनके लिए ज्यादा खाद और कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है, जो जेब पर भारी पड़ता है।
सबसे बड़ी बात, इन किस्मों से निकलने वाली पराली की मात्रा ज्यादा होती है। जब किसान पराली जलाते हैं, तो हवा में प्रदूषण बढ़ता है, जो सबके लिए नुकसानदायक है। यही वजह है कि सरकार ने इन किस्मों पर पूरी तरह रोक लगा दी है।
पानी और पर्यावरण को नुकसान
डिप्टी कमिश्नर संदीप ऋषि बताते हैं कि पूसा-44 और पीली पूसा जैसी किस्में खेतों में पानी की बर्बादी का बड़ा कारण हैं। इनके लिए 5-6 बार ज्यादा सिंचाई करनी पड़ती है, जिससे ट्यूबवेल दिन-रात चलते हैं। इससे बिजली भी ज्यादा खर्च होती है और भूजल का स्तर कम होता है। इन किस्मों की पराली भी दूसरी धान की किस्मों से ज्यादा निकलती है, जो जलाने पर धुएँ का गुबार बनाती है। ये धुआँ गाँवों से लेकर शहरों तक हवा को जहरीला कर देता है। इसलिए, इन किस्मों को बोने की मनाही है, और ऐसा करने वाले किसानों पर कार्रवाई हो सकती है। खेतों और पर्यावरण को बचाने के लिए ये कदम जरूरी है।
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मक्का की खेती पर जोर
संगरूर प्रशासन ने किसानों से मक्का की खेती अपनाने की गुजारिश की है। मक्का एक ऐसी फसल है, जो कम पानी में उग जाती है और भूजल को बचाने में मदद करती है। ये फसल न सिर्फ आसान है, बल्कि बाजार में इसकी मांग भी अच्छी है। पशु चारे, खाद्य पदार्थों और उद्योगों में मक्के का इस्तेमाल बढ़ रहा है। डिप्टी कमिश्नर का कहना है कि मक्का की खेती से किसान अपनी फसल में विविधता ला सकते हैं और मुनाफा भी बढ़ा सकते हैं। एक एकड़ में मक्के की खेती से 30,000 से 60,000 रुपये तक की कमाई हो सकती है, अगर सही बीज और तकनीक का इस्तेमाल करें।
मक्का की खेती शुरू करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। सबसे पहले, अपने नजदीकी कृषि विकास अधिकारी या खंड कृषि अधिकारी से संपर्क करें। वो आपको उन्नत बीज, नई तकनीक और सरकार की सहायता योजनाओं की जानकारी दे सकते हैं। मक्का की बुआई के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करें और दोमट या बलुई मिट्टी का इस्तेमाल करें। बुआई का सही समय मानसून की शुरुआत में, जून के मध्य से जुलाई तक, होता है। बीज को उपचारित करें, ताकि फसल में रोग न लगें। समय पर खाद और पानी दें, लेकिन ज्यादा सिंचाई से बचें। अगर फसल में कीट दिखें, तो तुरंत कृषि केंद्र से सलाह लें।
फसल विविधता से बढ़ेगा मुनाफा
खेती में एक ही फसल बार-बार बोने से मिट्टी की ताकत कम होती है और मुनाफा भी घट सकता है। डिप्टी कमिश्नर संदीप ऋषि सलाह देते हैं कि मक्का जैसी फसलों को अपनाकर किसान न सिर्फ पानी बचा सकते हैं, बल्कि खेती को और फायदेमंद बना सकते हैं। मक्का की फसल कम समय में तैयार होती है और बाजार में अच्छा दाम देती है। साथ ही, ये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचाती।
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