किसान भाइयों, गंगा नदी की निर्मलता हर भारतीय के दिल के करीब है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जमीन की शुद्धता और किसानों के जमीर की साफगोई ही गंगा को साफ रख सकती है? इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए जिला गंगा समिति मेरठ और कृषि विभाग मेरठ ने मिलकर हस्तिनापुर के कृषि विज्ञान केंद्र में एक प्रेरणादायक कार्यशाला का आयोजन किया। यह कार्यशाला गंगा किनारे प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित थी।18 जून 2025 को हुई इस पहल में किसानों को जैविक खेती के फायदे, गंगा की पारिस्थितिकी को बचाने के तरीके, और बाजार में प्राकृतिक उत्पादों की मांग के बारे में जानकारी दी गई। आइए जानें इस कार्यशाला के बारे में।
प्राकृतिक खेती का महत्व
प्राकृतिक खेती रासायनिक खादों और कीटनाशकों से मुक्त खेती है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और पर्यावरण को स्वस्थ रखती है। हस्तिनापुर, जो गंगा के किनारे बसा एक पवित्र स्थल है, में इसकी जरूरत और भी बढ़ जाती है। कार्यशाला में बताया गया कि रासायनिक खेती से गंगा में प्रदूषण बढ़ता है, जिससे जलजीव और पारिस्थितिकी प्रभावित होती है। प्राकृतिक खेती न सिर्फ मिट्टी को समृद्ध करती है, बल्कि गंगा के पानी को साफ रखने में भी मदद करती है। विशेषज्ञों ने गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, और नीम खली जैसे जैविक तरीकों को अपनाने की सलाह दी, जो लागत कम कर और पैदावार बढ़ा सकते हैं।
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कार्यशाला का आयोजन और उद्देश्य
हस्तिनापुर के कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित इस कार्यशाला में डॉ. वी. के. सिंह (जिलाधिकारी, मेरठ) और श्रीमती नूपुर गोयल (मुख्य विकास अधिकारी) सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करना और गंगा संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना था। कार्यशाला में जैविक उत्पादों की एक शानदार प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें गोबर से बनी खाद, जैविक कीटनाशक, और प्राकृतिक सब्जियाँ प्रदर्शित की गईं।
किसानों को बताया गया कि बाजार में जैविक उत्पादों की मांग और मुनाफा तेजी से बढ़ रहा है। सील बायोटेक कंपनी के प्रबंधक ने वादा किया कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों की बिक्री उनकी मदद से होगी, और उन्हें बाजार दर से अधिक दाम मिलेंगे।
किसानों का मार्गदर्शन
Natural Farming Workshop on The Banks of The Ganga in Meerut,कार्यशाला में किसानों को प्राकृतिक खेती के व्यावहारिक तरीके सिखाए गए। विशेषज्ञों ने बताया कि नीम खली और गोबर खाद का मिश्रण मिट्टी को पोषक तत्व देता है और कीटों से बचाता है। पौधों की कटिंग और फसल चक्र प्रबंधन पर भी चर्चा हुई। डॉ. सिंह ने कहा, “प्राकृतिक खेती भविष्य का रास्ता है, जो हमारी धरती और गंगा दोनों को संजीवनी देगी।” किसानों को गंगा के किनारे की मिट्टी की विशेषता का फायदा उठाने की सलाह दी गई। कार्यशाला में मौजूद प्रदर्शनी में जैविक खाद के जार और प्राकृतिक उत्पादों की जानकारी ने किसानों का उत्साह बढ़ाया।
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गंगा संरक्षण और प्रेरणा
गंगा की स्वच्छता सिर्फ सरकारी योजना नहीं, बल्कि हर किसान की जिम्मेदारी है। कार्यशाला में जोर दिया गया कि रासायनिक खादों से होने वाला प्रदूषण गंगा के जलजीवों और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाता है। प्राकृतिक खेती अपनाने से मिट्टी की सेहत सुधरेगी और गंगा का पानी शुद्ध रहेगा। किसानों को प्रेरित करते हुए श्रीमती गोयल ने कहा, “आपकी मेहनत न सिर्फ खेतों को हरा-भरा करेगी, बल्कि गंगा को भी नई जिंदगी देगी।” कार्यशाला के बाद कई किसानों ने प्राकृतिक खेती शुरू करने का संकल्प लिया।
मुनाफे और भविष्य की संभावनाएँ
प्राकृतिक खेती से पैदावार में थोड़ी शुरुआती कमी हो सकती है, लेकिन लंबे समय में मिट्टी की उर्वरता और बाजार मांग इसे फायदेमंद बनाती है। जैविक उत्पादों की कीमत रासायनिक फसलों से 20-30% ज्यादा होती है। हस्तिनापुर जैसे क्षेत्रों में गंगा के किनारे की मिट्टी प्राकृतिक खेती के लिए उपयुक्त है, जो किसानों के लिए मुनाफे का रास्ता खोल सकती है। कार्यशाला ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और पर्यावरण संरक्षण को जोड़ने का संदेश दिया।
हस्तिनापुर की यह कार्यशाला न सिर्फ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है, बल्कि गंगा की निर्मलता की राह भी दिखा रही है। किसान भाइयों, इस पहल से जुड़ें और अपने खेतों को जैविक बनाएँ। गंगा और धरती की सेहत के लिए यह एक छोटा, लेकिन प्रभावी कदम है। आज से शुरू करें और हरा-भरा भविष्य बनाएँ!
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