Israel-Iran युद्ध से चावल एक्सपोर्ट पर तगड़ा असर, 1 लाख टन बंदरगाह पर अटका, औंधे मुंह गिरे रेट

इजरायल और ईरान के बीच चल रहा सैन्य संघर्ष भारत के बासमती चावल निर्यात को गहरे संकट में डाल रहा है। ईरान, जो भारत के बासमती चावल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है, वहां जाने वाली शिपमेंट्स रुक गई हैं। इससे हरियाणा, पंजाब, और उत्तर प्रदेश के निर्यातकों और किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। यह लेख संघर्ष के बासमती चावल निर्यात पर प्रभाव, कीमतों में गिरावट, और इससे निपटने की रणनीतियों पर प्रकाश डालता है।

बासमती चावल निर्यात पर प्रभाव

ईरान भारत के बासमती चावल का प्रमुख आयातक है, जो 2024-25 में कुल निर्यात का 12.6% हिस्सा लेता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा बासमती चावल निर्यातक है, और ईरान के बाद सऊदी अरब और इराक इसके मुख्य खरीदार हैं। इजरायल-ईरान संघर्ष के कारण ईरान को निर्यात ठप हो गया है। चावल निर्यातक नरेंद्र मिगलानी के अनुसार, लगभग 1 लाख मीट्रिक टन चावल बंदरगाहों पर फंसा हुआ है। ईरान को भेजे जाने वाले चावल का बीमा नहीं होता, जिससे खराब होने का खतरा बढ़ गया है। इससे निर्यातकों को करोड़ों रुपये का नुकसान हो सकता है। पंजाब, जो 40% बासमती निर्यात में योगदान देता है, सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।

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कीमतों में भारी गिरावट

संघर्ष ने बासमती चावल की कीमतों को नीचे ला दिया है। उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद मंडी में बासमती 1509 किस्म की कीमत ₹2,700 प्रति क्विंटल हो गई है, जो पिछले साल ₹3,500 थी। निर्यात कीमतें $950-1,000 प्रति टन से घटकर $900-950 हो गई हैं। निर्यातक राजेश जैन के अनुसार, माल ढुलाई लागत बढ़ने और शिपमेंट रुकने से कीमतों में और कमी आ सकती है। इस साल 15% अधिक फसल होने की उम्मीद है, जिससे कीमतों पर दबाव और बढ़ गया है। किसानों को पिछले साल की तुलना में ₹800 प्रति क्विंटल कम दाम मिल रहा है, जिससे उनकी आय प्रभावित हो रही है।

भुगतान और शिपिंग की चुनौतियां

ईरान में बासमती चावल के भुगतान में देरी एक बड़ी समस्या है। निजी आयातक 6-8 महीने तक भुगतान रोकते हैं, और सरकारी एजेंसी भी 180 दिनों तक देरी कर सकती है। भारतीय चावल निर्यातक संघ के अनुसार, ₹1,000-1,200 करोड़ का भुगतान फंसा हुआ है। ईरान में निर्यात के लिए परमिट केवल चार महीने के लिए वैध होता है, और समय पर डिलीवरी न होने पर यह रद्द हो जाता है। होर्मुज जलडमरूमध्य में व्यवधान और लाल सागर में जोखिम के कारण माल ढुलाई लागत 15% बढ़ गई है। बीमा प्रीमियम में भी 20% की वृद्धि हुई है, और कई कंपनियां ईरान के लिए कवरेज देने से मना कर रही हैं।

क्रिसिल की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत का इजरायल और ईरान के साथ सीधा व्यापार कुल व्यापार का 1% से कम है। फिर भी, बासमती चावल निर्यात पर इसका असर गहरा है। वित्त वर्ष 2025 में ईरान और इजरायल 14% बासमती निर्यात के लिए जिम्मेदार हैं। संघर्ष लंबा चलने पर तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालेगा, क्योंकि भारत 80% तेल आयात पर निर्भर है। ब्रेंट क्रूड की कीमतें $73-78 प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, जो मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती हैं। ईरान द्वारा 21 अक्टूबर से 21 दिसंबर तक आयात प्रतिबंध ने स्थिति को और जटिल कर दिया है।

निर्यातकों को नए बाजार, जैसे यूरोप और उत्तरी अमेरिका, तलाशने चाहिए। सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन के माध्यम से सब्सिडी प्रदान कर सकती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन मार्केटप्लेस का उपयोग वैश्विक खरीदारों तक पहुंच बढ़ा सकता है। जैविक बासमती चावल की मांग बढ़ रही है, इसलिए निर्यातक इस क्षेत्र में निवेश कर सकते हैं। सरकार को शिपिंग मार्गों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारों से बातचीत करनी चाहिए। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसे वैकल्पिक व्यापार मार्गों को मजबूत करने से दीर्घकालिक लाभ हो सकता है।

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  • Shashikant

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