मॉनसून की फुहारों के साथ खेतों में नई फसलें तैयार होने का समय आ गया है, और सनई के फूल की सब्जी (साग) उगाने का इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता। सनई के फूल, जो जूट के पौधे से आते हैं, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, और झारखंड में लोकप्रिय हैं। ये न सिर्फ रसोई में लाजवाब स्वाद देते हैं, बल्कि सेहत और पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हैं। ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई सनई की साग में कोई रसायन नहीं होता, जो परिवार को स्वस्थ रखता है और मिट्टी को प्रदूषण से बचाता है।
ऑर्गेनिक सनई खेती का देसी तरीका
सनई की खेती (Organic Jute Farming) के लिए हल्की दोमट या बलुई मिट्टी सबसे अच्छी होती है, जहाँ पानी का निकास ठीक हो। मॉनसून से पहले (जून 2025) खेत की 2-3 बार जुताई करें और प्रति हेक्टेयर 15-20 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाएँ। मिट्टी का पीएच 6.0-7.0 रखें। बीज बुवाई जून के आखिरी हफ्ते या जुलाई की शुरुआत में करें। बीजों को 1-2 सेंटीमीटर गहराई में बोएँ और पौधों के बीच 30-45 सेंटीमीटर की दूरी रखें। बीजों को बुवाई से पहले 5 लीटर गोमूत्र या 2 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज से उपचारित करें, ताकि फफूंद से बचाव हो। मॉनसून की बारिश से नमी बनी रहती है, लेकिन खेत में पानी जमा न होने दें इसके लिए मेड़ बनाएँ।
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सनई की बेल को सहारा देने के लिए बांस या रस्सी का जाल लगाएँ, ताकि फूल और पत्तियाँ ऊपर चढ़ें। 15-20 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें। कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) या दशपर्णी अर्क का छिड़काव करें। ऑर्गेनिक खेती में रासायनिक खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल न करें। फूल 60-75 दिनों में तैयार हो जाते हैं। इन्हें ताजा तोड़कर साग बनाएँ या सुखाकर स्टोर करें। बरसात में फफूंद से बचने के लिए मिट्टी में ट्राइकोडर्मा (2 किलो प्रति एकड़) मिलाएँ।
सेहत का तोहफा, सनई के फूल की साग
सनई के फूल की सब्जी सेहत के लिए किसी आयुर्वेदिक नुस्खे से कम नहीं। इसमें एंटीऑक्सिडेंट्स, विटामिन ए, सी, और आयरन भरपूर मात्रा में होते हैं, जो इम्यूनिटी बढ़ाते हैं और खून की कमी दूर करते हैं। ये पाचन को बेहतर बनाता है और वजन नियंत्रण में मदद करता है। सनई का साग सर्दी-जुकाम और सूजन को कम करने में भी कारगर है। ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई साग में कीटनाशक नहीं होते, जो कैंसर और हृदय रोग के खतरे को घटाता है। बरसात में जब बीमारियाँ पनपती हैं, ये साग शरीर को मजबूती देता है। देसी रेसिपी में इसे सरसों के तेल और मसालों के साथ बनाया जाता है, जो स्वाद और सेहत दोनों लाता है।
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पर्यावरण को हरा-भरा रखें
ऑर्गेनिक सनई खेती पर्यावरण के लिए वरदान है। इसमें रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं होता, जो मिट्टी और पानी को प्रदूषण से बचाता है। सनई की बेलें कार्बन डाइऑक्साइड सोखती हैं और ऑक्सीजन छोड़ती हैं, जिससे हवा साफ रहती है। मॉनसून में मेड़ बनाकर बुवाई से मिट्टी का कटाव रुकता है। इसके अलावा, सनई का पौधा जूट फाइबर भी देता है, जो बायोडिग्रेडेबल उत्पादों के लिए उपयोगी है और प्लास्टिक के नुकसान को कम करता है। ये खेती खेतिहर समुदाय को प्रकृति के साथ जोड़ती है और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देती है।
कितना लाभ हो सकता है
बरसात में ऑर्गेनिक सनई की खेती कम लागत (10-12 हजार रुपये प्रति एकड़) में शुरू हो सकती है। प्रति हेक्टेयर 100-150 क्विंटल ताजा फूल या साग की पैदावार हो सकती है। बाजार में सनई की साग 40-80 रुपये प्रति किलो तक बिकती है, जिससे 1- 2.5 लाख रुपये प्रति एकड़ की कमाई संभव है। सूखे फूलों से आयुर्वेदिक उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं। कीटों से बचाव के लिए गोमूत्र (10 लीटर प्रति एकड़) का छिड़काव करें। फफूंद से बचने के लिए पौधों के आसपास नीम की पत्तियाँ डालें।
बरसात में ऑर्गेनिक सनई के फूल की खेती से सेहत और पर्यावरण को लाभ पहुँचेगा, साथ ही मुनाफा भी मिलेगा। सही जानकारी, देसी मेहनत, और सरकारी सहायता से आप इस मौके को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना सकते हैं। इस जून-जुलाई 2025 में सनई की खेती शुरू करें और अपनी मेहनत का पूरा दाम पाएँ!
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