Soil Health: किसान साथियों, पिछले दिनों पंजाब से एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है, जिसमें कई जिलों की मिट्टी में नाइट्रोजन की भारी कमी पाई गई है। ये खबर खेतिहर समुदाय के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि नाइट्रोजन फसलों की वृद्धि का आधार है। अगर आपकी फसलें धीरे-धीरे बढ़ रही हैं, पत्ते पीले पड़ रहे हैं, या पौधों में जान नहीं दिख रही, तो मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी इसका कारण हो सकता है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह पोषक तत्व फसल की सेहत और उपज के लिए सबसे जरूरी है। अच्छी बात यह है कि कुछ आसान और देसी उपायों से इस समस्या से निपटा जा सकता है।
नाइट्रोजन की कमी की पहचान, लक्षण और खतरे
नाइट्रोजन की कमी की शुरुआत पत्तों के पीले पड़ने से होती है, खासकर पुराने पत्तों में। जैसे-जैसे ये कमी बढ़ती है, पौधों की बढ़वार रुक जाती है, और वे कमजोर और पतले दिखने लगते हैं। फूल और फल बनना भी कम हो जाता है, जिससे उपज पर बुरा असर पड़ता है। अगर समय रहते इसकी अनदेखी की जाए, तो फसल पूरी तरह बर्बाद हो सकती है। पंजाब की रिपोर्ट के मुताबिक, बार-बार एक ही फसल उगाने और रासायनिक खाद के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता कम हुई है। मॉनसून में नमी के कारण ये समस्या और गंभीर हो सकती है, इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है।
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मिट्टी को नई जिंदगी, देसी और ऑर्गेनिक समाधान
नाइट्रोजन की कमी को दूर करने का सबसे आसान तरीका है हरी खाद का इस्तेमाल। ढैंचा, सनई, या मूंग जैसी फसलों को खेत में बोकर 40-50 दिन बाद मिट्टी में दबा दें। ये फसलें जड़ों में नाइट्रोजन बांधने वाले बैक्टीरिया पनपाते हैं, जो मिट्टी को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं। ये तरीका सस्ता और मॉनसून के लिए मुफीद है। इसके अलावा, गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, या नीलगिरी की पत्तियों से बनी खाद मिट्टी में धीरे-धीरे नाइट्रोजन छोड़ती है और लंबे समय तक लाभ देती है। इन्हें खेत में मिलाने से मिट्टी की सेहत सुधरती है और फसलें मजबूत होती हैं।
रासायनिक और जैविक संतुलन, समझदारी से उपयोग
अगर आप रासायनिक उर्वरक का सहारा लेना चाहते हैं, तो यूरिया या अमोनियम सल्फेट का संतुलित इस्तेमाल करें। लेकिन इसे बिना सोचे-समझे न डालें, क्योंकि ज्यादा मात्रा मिट्टी को नुकसान पहुँचा सकती है। नजदीकी कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें और मिट्टी परीक्षण करवाएँ। साथ ही, जैव उर्वरकों जैसे राइजोबियम, अजोस्पिरिलम, और अजोटोबैक्टर का प्रयोग करें। ये बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में मिलाते हैं और फसलों को प्राकृतिक ताकत देते हैं। मॉनसून में इनका छिड़काव करने से बारिश का फायदा भी मिलेगा।
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फसल चक्र, मिट्टी की सेहत का राज
एक ही फसल बार-बार उगाने से मिट्टी की नाइट्रोजन खत्म हो जाती है, जो समस्या को और बढ़ाता है। इसके लिए फसल चक्र अपनाएँ। दालों, मूंग, या अरहर जैसी फसलों को बीच-बीच में लगाएँ, क्योंकि ये नाइट्रोजन को मिट्टी में वापस लाती हैं। उदाहरण के लिए, गेहूँ के बाद मूंग बोने से मिट्टी का संतुलन बना रहता है और अगली फसल के लिए आधार तैयार होता है। ये तरीका खेतिहर समुदाय के लिए पुराना लेकिन असरदार है, जो मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ रखता है।
नाइट्रोजन की कमी से अपनी फसलों को बचाना अब आसान है। देसी ज्ञान, ऑर्गेनिक उपाय, और सरकारी सहायता से आप अपनी मिट्टी को फिर से जीवंत कर सकते हैं। इस जून-जुलाई 2025 में इन तरीकों को आजमाएँ और अपनी मेहनत का पूरा फल पाएँ!
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