Nainital Latest News: उत्तराखंड की प्रसिद्ध नैनी झील में एक बार फिर दुर्लभ स्नो ट्राउट मछलियों की मौजूदगी देखने को मिलेगी। एक समय इस झील की शान रही साइजोथोरेक्स रिचर्डसोनाई प्रजाति, जो पूरी तरह विलुप्त हो चुकी थी, अब कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर, नैनीताल स्थित जंतु विज्ञान विभाग की अनोखी पहल से जीवनदान पा रही है। यह पहल आधुनिक बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से की जा रही है, जो सीमित जल संसाधनों में भी मछली पालन को संभव बनाती है।
इस तकनीक की खासियत यह है कि मछलियों के अपशिष्ट अमोनिया को लाभकारी बैक्टीरिया की मदद से प्रोटीन में बदल दिया जाता है, जिससे पानी की गुणवत्ता बनी रहती है और बार-बार पानी बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे मछली पालन न केवल टिकाऊ हो रहा है, बल्कि चारे की खपत भी कम हो रही है।
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बायोफ्लॉक टैंक से नई शुरुआत
इस अभिनव प्रयोग को आगे बढ़ाने के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डीएस रावत ने विभाग को आंतरिक वित्तीय सहायता प्रदान की है, जिसके तहत परिसर में बायोफ्लॉक टैंक स्थापित किए गए हैं। पहले से चार टैंक संचालित हो रहे थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर छह कर दी गई है। जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एच.एस. बिष्ट के अनुसार, एक टैंक में 5,000 से 10,000 लीटर पानी का उपयोग कर मछली पालन संभव है, जो सीमित स्थान में अधिक उत्पादन का रास्ता खोलता है। यह तकनीक न सिर्फ स्नो ट्राउट जैसे दुर्लभ प्रजातियों को बचाने में मदद कर रही है, बल्कि स्थानीय मछली पालन को भी नई दिशा दे रही है।
पर्यावरण और आजीविका का संतुलन
बायोफ्लॉक तकनीक पर्यावरण के लिए भी लाभकारी साबित हो रही है। पानी की बचत और अपशिष्ट प्रबंधन से झील की पारिस्थितिकी को नुकसान नहीं पहुँचता, जो नैनीताल जैसे संवेदनशील क्षेत्र के लिए जरूरी है। इस तकनीक से मछली पालन में चारे की खपत कम होने से लागत भी घटती है, जो छोटे खेतिहरों के लिए फायदेमंद है। प्रो. बिष्ट का कहना है कि यह प्रयोग न सिर्फ स्नो ट्राउट को वापस झील में लाने में सफल होगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के नए अवसर भी पैदा करेगा।
सरकार की ओर से जैविक खेती और मछली पालन को बढ़ावा देने वाली योजनाओं, जैसे परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), के तहत इस पहल को और समर्थन मिल सकता है। आने वाले दिनों में यह तकनीक उत्तराखंड के अन्य झीलों और नदियों में भी लागू हो सकती है, जो मछली पालन को टिकाऊ और लाभकारी बनाएगी।
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