बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने खरीफ 2025 के लिए धान की 4 नई किस्मों की सिफारिश की, जल्द किसानों को मिलेगा बीज

भागलपुर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में 20 जून 2025 से शुरू हुई चार दिन की 29वीं अनुसंधान परिषद ने खरीफ सीजन के लिए धान की चार नई किस्मों का ऐलान किया है। ये किस्में हैं—सबौर कतरनी धान-1, सबौर सांभा धान, सबौर विभूति धान, और सबौर श्री सब-1। ये नई किस्में ज्यादा पैदावार देने वाली हैं और किसानों की मुश्किलों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं। चाहे जलभराव की समस्या हो या रोगों का खतरा, इन किस्मों में खास खूबियाँ जोड़ी गई हैं। साथ ही, इनके बीज जल्द ही किसानों तक पहुँचाने की तैयारी है। आइए, जानते हैं कि ये नई किस्में क्या खास ला रही हैं और कैसे ये किसानों के लिए फायदेमंद होंगी।

सबौर कतरनी धान-1

सबौर कतरनी धान-1 को बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। ये किस्म खास तौर पर उन किसानों के लिए वरदान है, जो कतरनी धान की सुगंध और स्वाद पसंद करते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसकी डेढ़ गुना ज्यादा पैदावार। पारंपरिक कतरनी किस्मों के मुकाबले ये जल्दी पकती है, जिससे किसानों को समय की बचत होगी। साथ ही, इसके पौधे गिरते नहीं हैं, यानी तेज़ हवा या बारिश में भी फसल खराब होने का डर कम है। बिहार के उन इलाकों में, जहाँ कतरनी धान की माँग है, ये किस्म बाज़ार में अच्छा दाम दिला सकती है। विश्वविद्यालय ने इस किस्म को बड़े पैमाने पर किसानों तक पहुँचाने का फैसला किया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका फायदा उठा सकें।

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सबौर सांभा धान

सबौर सांभा धान एक मध्यम लंबे दानों वाली किस्म है, जो उन किसानों के लिए बनाई गई है, जो बापटला जैसी किस्मों का इस्तेमाल करते हैं। इसकी पैदावार ज्यादा है, जिससे किसानों की कमाई में इजाफा होगा। विश्वविद्यालय ने इस किस्म को 100 एकड़ के खेतों में प्रदर्शन के लिए उपलब्ध कराने का ऐलान किया है। इसका मतलब है कि किसान इसे अपने खेतों में आजमा सकते हैं और इसके फायदे देख सकते हैं। ये किस्म उन इलाकों के लिए खास तौर पर उपयोगी है, जहाँ मध्यम अवधि की फसल उगाई जाती है। इसकी खेती से न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि बाज़ार में अच्छी माँग के चलते किसानों को मुनाफा भी ज्यादा मिलेगा।

सबौर श्री सब-1

सबौर श्री सब-1 को सबौर श्री धान का बेहतर रूप कहा जा सकता है। इस किस्म में जलभराव सहने की खास ताकत जोड़ी गई है। ये 14 दिनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी खराब नहीं होती और सामान्य हालात में 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार दे सकती है। बिहार के उन इलाकों में, जहाँ मानसून के दौरान खेतों में पानी भर जाता है, ये किस्म किसानों के लिए बहुत फायदेमंद होगी। इसकी खेती से न सिर्फ फसल बचेगी, बल्कि अच्छी पैदावार भी मिलेगी। विश्वविद्यालय ने इस किस्म को जल्द से जल्द किसानों तक पहुँचाने के लिए बीज उत्पादन पर ध्यान देने को कहा है।

सबौर विभूति धान

सबौर विभूति धान उन किसानों के लिए तैयार की गई है, जो बैक्टीरिया जनित पत्ता झुलसा रोग से परेशान हैं। इस किस्म को जीन पिरामिडिंग तकनीक से विकसित किया गया है, जिससे ये रोग के खिलाफ मजबूत है। साथ ही, इसकी पैदावार भी ज्यादा है, जो किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेगी। बिहार के उन खेतों में, जहाँ रोगों की वजह से फसल खराब हो जाती है, ये किस्म एक अच्छा विकल्प साबित होगी। इसकी खेती से किसानों को नुकसान का डर कम होगा और फसल की गुणवत्ता भी बनी रहेगी।

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किसानों तक बीज पहुँचाने की तैयारी

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की अनुसंधान परिषद ने इन चारों किस्मों को पूर्ण समर्थन दिया है। विश्वविद्यालय के कुलपति ने वैज्ञानिकों को निर्देश दिए हैं कि इन किस्मों के बीज जल्द से जल्द किसानों तक पहुँचाए जाएँ। साथ ही, इनका खेतों में प्रदर्शन कराया जाए, ताकि किसान इनके फायदे देख सकें। इन किस्मों की ब्रांडिंग और पैकेजिंग पर भी काम शुरू करने की बात कही गई है, ताकि ये बाज़ार में अपनी पहचान बना सकें। भारत सरकार के कृषि आयुक्त ने वैज्ञानिकों से कहा कि वे अपनी तकनीकों को तेज़ी से किसानों तक ले जाएँ और खेत स्तर पर बीज उत्पादन को बढ़ावा दें। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के संयुक्त सचिव ने सुझाव दिया कि इन किस्मों का प्रचार अखबारों, रेडियो और टीवी के ज़रिए किया जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इनके बारे में जान सकें।

शोध और तकनीक का नया दौर

इस अनुसंधान परिषद में टेक्नोलॉजी कंपेंडियम पुस्तक का विमोचन भी किया गया, जिसमें विश्वविद्यालय की नई तकनीकों की जानकारी है। प्राकृतिक संसाधन संरक्षण से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपने शोध प्रस्तुत किए, जिन पर परिषद ने खरीफ सीजन के लिए ज़रूरी सुझाव दिए। अगले दो दिनों में बाकी शोध समूह अपनी प्रस्तुतियाँ देंगे। विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान ने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे किसानों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर और उपयोगी तकनीकें विकसित करें। ये नई धान की किस्में बिहार के किसानों के लिए नई उम्मीद लेकर आई हैं, जो उनकी मेहनत को और रंग लाएँगी।

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  • Shashikant

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